पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन / (Record no. 38406)

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041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title hin-
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 303.44
Item number RAG-P
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME
Personal name रघुवंश [Raghuvansh]
Relator term लेखक [author]
245 ## - TITLE STATEMENT
Title पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन /
Statement of responsibility, etc रघुवंश
246 ## - VARYING FORM OF TITLE
Title proper/short title Pashchimi Bhautik Sanskriti ka Utthan aur Patan
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication प्रयागराज :
Name of publisher लोकभारती प्रकाशन,
Year of publication 2004.
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Number of Pages 664p.
504 ## - BIBLIOGRAPHY, ETC. NOTE
Bibliography, etc Includes bibliographical references and index.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc डॉ. रघुवंश प्रारंभ ही से ऐसी संस्कृति और ऐसे समाज के बारे में सोचते रहे हैं जिसमें सभी मनुष्य शांति और सुख के साथ रह सकें। इससे सम्बन्धित अनेक प्रश्नों, उत्तरों और प्रत्युत्तरों पर वे ऐतिहासिक और तार्किक दृष्टि से ही नहीं मूल्य-परक दृष्टि से भी निरंतर विचार करते रहे हैं। सारा वही चिन्तन सूत्रित होकर इस पुस्तक में विन्यस्त है। पश्चिमी सभ्यता की तर्क केन्द्रित भौतिक सभ्यता की ओर उन्मुखता तथा पूर्वी संस्कृति की • आत्मकेन्द्रीयता दोनों की अतियों और परिणामों पर उन्होंने अत्यंत सजगता के साथ इस पुस्तक में विचार किया है। इसमें अनेक विचारकों के मतों को उन्होंने अपने चिन्तनक्रम में नये सिरे से परिभाषित किया है। गांधी, लोहिया और जयप्रकाश नारायण के विचारों और कार्यों से उन्हें भौतिक सभ्यता के बरक्स एक विकल्प सूझता दिखता है, परंतु यह पुस्तक केवल इन तीन विभूतियों के निष्कर्षो का समन्वय नहीं है। पुस्तक में उन्होंने चर्चा और प्रसंगों के क्रम में इनके विचारों का भी विवेचन किया है और इनके बीच से एक विकल्प प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। वर्तमान अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति के परिणामों से वे न केवल परिचित हैं, वे इनका विकल्प भी सुझाते हैं। मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में मानव सभ्यताओं का मूल्यांकन करते हुए रघुवंश जी नकारात्मक नहीं, सकारात्मक, संभावनायुक्त लक्ष्यों का संकेत करते हैं। मनुष्य की शक्तियों पर अपरिमित विश्वास इस पुस्तक में उन्हें अत्यंत गम्भीर रूप से सार्थक विकल्प को तलाश की ओर अभिमुख किये रहा।<br/>यह पुस्तक एक लेखक के जीवन भर के अनुभवों, तर्कों और विचारों का प्रतिफल मात्र नहीं है। यह आज के मनुष्य के अनेक जटिल प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयत्न भी है। इसमें विवेकपूर्ण विश्लेषण ही नहीं, गांधी, लोहिया और जयप्रकाश की चिन्ताओं का हल खोजने का अभूतपूर्व प्रयत्न है। पुस्तक पश्चिमी सभ्यता की उपलब्धियों को रेखांकित करती है, परन्तु इसके बावजूद मनुष्यता के क्रमिक क्षरणा के प्रति भी सजग करती है। मनुष्य को कैसे बदला जाय कि वह प्रश्नों और संकटों का स्वयं उत्तर देता चले इस सार्थक विकल्प के लिए यह पुस्तक उन सबके लिए पठनीय है, जो इन प्रश्नों से विचलित होते हैं।
546 ## - LANGUAGE NOTE
Language note Hindi.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term सांस्कृतिक नृविज्ञान.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term सामाजिक परिवर्तन.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term पाश्चात्य सभ्यता.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term दार्शनिक दृष्टिकोण.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term गांधीवादी दर्शन.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term लोहिया, राम मनोहर.
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term जयप्रकाश नारायण.
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme
Koha item type Books
Holdings
Withdrawn status Lost status Damaged status Not for loan Permanent Location Current Location Date acquired Source of acquisition Cost, normal purchase price Full call number Accession Number Cost, replacement price Price effective from Koha item type
        NASSDOC Library NASSDOC Library 2023-03-17 Overseas 0.00 303.44 RAG-P 53411 0.00 2023-06-07 Books