000 -LEADER |
fixed length control field |
06850nam a2200229 4500 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER |
ISBN |
9788183612524 |
041 ## - LANGUAGE CODE |
Language code of text/sound track or separate title |
hin- |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER |
Classification number |
891.433 |
Item number |
BHA-S |
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME |
Personal name |
भंडारी, मन्नू | Bhandari, Mannu |
Relator term |
लेखक | Author. |
Fuller form of name |
मन्नू भंडारी | Mannu Bhandari |
245 ## - TITLE STATEMENT |
Title |
सम्पूर्ण कहानियाँ / |
Statement of responsibility, etc |
मन्नू भंडारी |
246 ## - VARYING FORM OF TITLE |
Title proper/short title |
Sampoorna Kahaniyan by Mannu Bhandari |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) |
Place of publication |
नई दिल्ली: |
Name of publisher |
राजकमल प्रकाशन, |
Year of publication |
2018. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION |
Number of Pages |
498p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. |
Summary, etc |
सम्पूर्ण कहानियाँ : मन्नू भंडारी कई बार खयाल आता है कि यदि मेरी पहली कहानी बिना छपे ही लौट आती तो क्या लिखने का यह सिलसिला जारी रहता या वहीं समाप्त हो जाता...क्योंकि पीछे मुड़कर देखती हूँ तो याद नहीं आता कि उस समय लिखने को लेकर बहुत जोश, बेचैनी या बेताबी जैसा कुछ था। जोश का सिलसिला तो शुरू हुआ था कहानी के छपने, भैरवजी के प्रोत्साहन और पाठकों की प्रतिक्रिया से। अपने भीतरी 'मैं' के अनेक-अनेक बाहरी 'मैं' के साथ जुड़ते चले जाने की चाहना में मुझे कुछ हद तक इस प्रश्न का उत्तर भी मिला कि मैं क्यों लिखती हूँ? जब से लिखना आरम्भ किया, तब से न जाने कितनी बार इस प्रश्न का सामना हुआ, पर कभी भी कोई सन्तोषजनक उत्तर मैं अपने को नहीं दे पाई तो दूसरों को क्या देती? इस सारी प्रक्रिया ने मुझे उत्तर के जिस सिरे पर ला खड़ा किया, वही एकमात्र या अन्तिम है, ऐसा दावा तो मैं आज भी नहीं कर सकती, लेकिन यह भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू तो है ही? किसी भी रचना के छपते ही इस इच्छा का जगना कि अधिक से अधिक लोग इसे पढ़ें, केवल पढ़ें ही नहीं, बल्कि इससे जुड़ें भी—संवेदना के स्तर पर उसके भागीदार भी बनें यानी कि एक की कथा-व्यथा अनेक की बन सके, बने...केवल मेरे ही क्यों, अधिकांश लेखकों के लिखने के मूल में एक और अनेक के बीच सेतु बनने की यह कामना ही निहित नहीं रहती? मैंने चाहे कहानियाँ लिखी हों या उपन्यास या नाटक—भाषा के मामले में शुरू से ही मेरा नजरिया एक जैसा रहा है। शुरू से ही मैं पारदर्शिता को कथा-भाषा की अनिवार्यता मानती आई हूँ। भाषा ऐसी हो कि पाठक को सीधे कथा के साथ जोड़ दे...बीच मे अवरोध या व्यवधान बनकर न खड़ी हो। कुछ लनोगों की धारणा है कि ऐसी सहज-सरल बकौल उनके सपाट भाषा, गहन संवेदना, गूढ़ अर्थ और भावना के महीन से महीन रेशों को उजागर करने में अक्षम होती है। पर क्या जैनेन्द्रजी की भाषा-शैली इस धारणा को ध्वस्त नहीं कर देती? हाँ, इतना जरूरी कहूँगी कि सरल भाषा लिखना ही सबसे कठिन काम होता है। इस कठिन काम को मैं पूरी तरह साध पाई, ऐसा दावा करने का दुस्साहस तो मैं कर ही नहीं सकती पर इतना जरूर कहूँगी कि प्रयत्न मेरा हमेशा इसी दिशा में रहा है। जब अपनी सम्पूर्ण कहानियों को एक जिल्द में प्रस्तुत करने का प्रस्ताव आया तो मैंने अपनी कहानियों के रचनाक्रम में कोई उलट-फेर नहीं किया। जिस क्रम से संकलन छपे थे, उनकी कहानियों को उसी क्रम से इसमें रखा है—जिससे पाठक मेरी कथा-यात्रा से गुजरते हुए मेरे रचना-विकास को भी जान सकें।<br/> |
546 ## - LANGUAGE NOTE |
Language note |
Hindi. |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
मन्नू भंडारी – कृतियाँ |
Form subdivision |
कहानियाँ |
General subdivision |
हिंदी साहित्य |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
हिंदी कथा साहित्य |
Form subdivision |
लघुकथाएँ |
General subdivision |
समकालीन हिंदी लेखन |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
भारतीय समाज – साहित्य में चित्रण |
Form subdivision |
सामाजिक यथार्थवाद |
General subdivision |
स्त्रीवादी दृष्टिकोण |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
नारी जीवन और संघर्ष |
Form subdivision |
साहित्य में चित्रण |
General subdivision |
नारीवाद और सामाजिक परिवर्तन |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
हिंदी साहित्य – महिला लेखक |
Form subdivision |
अध्ययन और आलोचना |
General subdivision |
महिला लेखन और समाज |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) |
Source of classification or shelving scheme |
|
Koha item type |
Books |