000 -LEADER |
fixed length control field |
03179nam a22001817a 4500 |
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER |
ISBN |
9789350009376 |
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER |
Classification number |
891.431 |
Item number |
NAG-A |
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME |
Personal name |
नागार्जुन |
245 ## - TITLE STATEMENT |
Title |
आख़िर ऐसा क्या कह दिया मैंने |
Statement of responsibility, etc |
By नागार्जुन |
246 ## - VARYING FORM OF TITLE |
Title proper/short title |
Aakhir Aisa Kya Kah Diya Maine |
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT) |
Place of publication |
नई दिल्ली: |
Name of publisher |
वाणी प्रकाशन |
Year of publication |
2012. |
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION |
Number of Pages |
64p. |
520 ## - SUMMARY, ETC. |
Summary, etc |
आरम्भ से ही नागार्जुन की कविताओं का एक बड़ा हिस्सा प्रकृति से सम्बन्धित रहा है। प्रकृति उन्हें आकर्षित करती रही है और उनका यात्री मन उसमें रमता रहा है।प्रकृति से इस गहरे जुड़ाव के कारण नागार्जुन ने उससे एक नया रचनात्मक रिश्ता बनाया है।वेप्रकृति का महज दृश्यवर्णन नहीं करते बल्कि उसे मानवीय संवेदना से सीधे जोड़कर देखते हैं। यह संवेदनात्मक जुड़ाव इस हद तक है कि प्रकृति नागार्जुन के जीने मेंशामिल है।यही वजह है कि प्रकृति के परिवर्तित होते संस्पर्श उन कीमनः स्थितियों के बदलाव के कारण भी बनते हैं।नागार्जुन के इस नये संग्रह में प्रकृति से नागार्जुन के इस रचनात्मक 'पारिवारिक' रिश्तेकोआपसहजहीअनुभवकरेंगे।लेकिनइनकीसबसेबड़ीविशेषतायहहैकियेकविताएँ 'प्रकृतिकाव्य' होकरभीमहजप्रकृतिकेबारेमेंनहींहैंबल्किकुलमिलाकरमनुष्यकीज़िन्दगीकेसंघर्षऔरउसकेहर्ष-विषादकेबारेमेंहीहैं।यहीजनकविनागार्जुनकेकाव्यकामूलकथ्यभीरहाहै पौड़ीगढ़वालकेपर्वतीयग्रामांचलजहरीखालप्रवासमेंरहकरलिखीगयींयेकविताएँनागार्जुनकेकविमनकीएकविशेषदुनियासामनेलातीहैं।वहआह्लादकारीहोनेकेसाथहीमार्मिकभीहैं। |
546 ## - LANGUAGE NOTE |
Language note |
Hindi |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
Hindi Literature |
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM |
Topical Term |
Hindi Fiction |
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA) |
Source of classification or shelving scheme |
|
Koha item type |
Books |