सख़ुनतकिया/ by (Record no. 39487)

000 -LEADER
fixed length control field 05041nam a22001937a 4500
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
ISBN 9789390678358
041 ## - LANGUAGE CODE
Language code of text/sound track or separate title HINDI
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number 891.4309
Item number SIN-S
100 ## - MAIN ENTRY--AUTHOR NAME
Personal name सिंह, नामवर
Relator term author
Fuller form of name Namwar Singh.
245 ## - TITLE STATEMENT
Title सख़ुनतकिया/ by
Statement of responsibility, etc नामवर सिंह
246 ## - VARYING FORM OF TITLE
Title proper/short title Sakhuntakiya
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC. (IMPRINT)
Place of publication नई दिल्ली :
Name of publisher वाणी प्रकाशन,
Year of publication 2021
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Number of Pages 163p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc मुझे साहित्य-क्षेत्र में चुनाव नहीं जीतना है जो फड़कता घोषणा-पत्र तैयार कर दूँ। अपनी सीमाओं से अपरिचित नहीं हूँ। जीवन-संघर्ष में बिना कूदे पोथियों के बल अधिक दिन तक कविता न लिखी जायेगी। काग़ज़ की नाव सागर में न चलेगी-बँधे तालाब में भले ही गाजे। जन-आन्दोलन से उठे हुए ताज़े कच्चे भाव तथा ताज़ी कच्ची भाषा ही नये साहित्य में मूर्तिमान होगी। उसी आग में पिघल पर पोथियों का ज्ञान नये रूप में ढलेगा। मुझे इतनी तुकबन्दी के बाद भी कवि-केवल कवि रूप में पैदा होने और जीवित रहने का मुगालता नहीं है। गद्य या पद्य जिस किसी भी माध्यम से मेरा अभिप्रेत फूट निकलना चाहेगा, फूटेगा। इस जन-संघर्ष में मानवता के हमराहियों को बल देने के लिए अपने को निःशेष करना ही सूझ रहा है। दूसरा कोई रास्ता नहीं। बात बड़ी चाहिए, माध्यम स्वयं उसका आकार और महिमा पा लेगा। साफ़ दिख गया है कि गद्य लिखने से कविता को नयी ताक़त मिलती है अन्यथा अपना सारा वक्तव्य एक कविता में भरने से दोनों की हानि होती है। हमारे कई साथी आज कल यही कर रहे हैं। यदि मुझे अपने वक्तव्य को कविता के चौखटे में काटना पड़ेगा तो वह चौखटा छोड़ दूँगा लेकिन वक्तव्य को पुरानी चीनी नारी का पाँव न बनाऊँगा। पाब्लो नेरूदा और जाफरी को पढ़ने के बाद भी अभी नहीं लिखा कि कहीं उनका उपहास न हो उठे। हमेशा की तरह आज भी कविता को गँदला करने की अपेक्षा कविता न रचने का साहस है। साथियों के उपहास की उतनी चिन्ता नहीं जितनी आत्म-उपहास की-अपने लक्ष्य के प्रति उपहास की। यदि मनुष्य के क्षीण शरीर में अनुराग-रंजित धरती का रस खींच कर दे सका; उसकी मानसिक नीरसता में विविध सामाजिक सम्बन्धों की सरसता दे सका; यदि उसके असन्तोष को स्वस्थ संयम तथा दृढ़ता दे सका तो अतीत से निचोड़कर, वर्तमान से दुहकर, भविष्य को चीरकर देने की कोशिश करूँगा। इस संघर्ष में भले ही यह कवि टूट जाय-जाय
546 ## - LANGUAGE NOTE
Language note Hindi
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term Hindi literature
Form subdivision हिंदी साहित्य
-- History and criticism
-- इतिहास और आलोचना
General subdivision Literature and society
-- साहित्य और समाज
Geographic subdivision India
-- भारत
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical Term Literary criticism
Form subdivision साहित्यिक आलोचना
-- Essays
-- निबंध
General subdivision Postcolonialism in literature
-- साहित्य में उत्तर उपनिवेशवाद
Geographic subdivision India
-- भारत
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Source of classification or shelving scheme
Koha item type Books
Holdings
Withdrawn status Lost status Damaged status Not for loan Collection code Permanent Location Current Location Date acquired Source of acquisition Cost, normal purchase price Bill Date Full call number Accession Number Cost, replacement price Price effective from Koha item type
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