पाँच आँगनों वाला घर / गोविन्द मिश्र
By: मिश्र, गोविन्द Mishr, Govind [लेखक., author.].
Publisher: दिल्ली : राधाकृष्ण प्रकाशन, 2019Description: 216p.ISBN: 9788183612548 .Other title: Panch Aangano wala Ghar.Subject(s): पारिवारिक सागा -- फिक्शन | भारत -- 20वीं सदी -- सामाजिक परिस्थितियाँ -- कथा | हिन्दी कथाDDC classification: 891.4435 Summary: करीब पचास वर्षों में फैली पाँच आँगनों वाला घर के सरकने की कहानी दरअसल तीन पीढ़ियों की कहानी है- एक वह जिसने 1942 के आदर्शों की साफ़ हवा अपने फेफड़ों में भरी, दूसरी वह जिसने उन आदर्शों को धीरे-धीरे अपनी हथेली से झरते देखा और तीसरी वह जो उन आदर्शों को सिर्फ पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ सकी। परिवार कैसे उखड़कर सिमटता हुआ करीब-करीब नदारद होता जा रहा है - व्यक्ति को उसकी वैयक्तिकता के सहारे अकेला छोड़कर ! गोविन्द मिश्र के इस सातवें उपन्यास को पढ़ना अकेले होते जा रहे आदमी की उसी पीड़ा से गुज़रना है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Books | NASSDOC Library | 891.4435 MIS-P (Browse shelf) | Available | 53418 |
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891.4414 TAG- Tagore's ideas of the new woman | 891.443 AGR-L लम्बी कहानी और समकालीन परिदृश्य / | 891.4430093552 SHA-I Intimate Relations | 891.4435 MIS-P पाँच आँगनों वाला घर / | 891.44371 BHO-S Subaltern speaks: truth and ethics in Mahasweta Devi’s fiction on tribals | 891.456092 CRI- Critical Discourse in Odia: | 891.46 GOK-O One foot on the ground : |
Includes bibliographical references and index.
करीब पचास वर्षों में फैली पाँच आँगनों वाला घर के सरकने की कहानी दरअसल तीन पीढ़ियों की कहानी है- एक वह जिसने 1942 के आदर्शों की साफ़ हवा अपने फेफड़ों में भरी, दूसरी वह जिसने उन आदर्शों को धीरे-धीरे अपनी हथेली से झरते देखा और तीसरी वह जो उन आदर्शों को सिर्फ पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ सकी। परिवार कैसे उखड़कर सिमटता हुआ करीब-करीब नदारद होता जा रहा है - व्यक्ति को उसकी वैयक्तिकता के सहारे अकेला छोड़कर ! गोविन्द मिश्र के इस सातवें उपन्यास को पढ़ना अकेले होते जा रहे आदमी की उसी पीड़ा से गुज़रना है।
Hindi.
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