1857 का स्वातंत्रीय समर/ by विनायक दामोदर सावरकर
By: सावरकर, विनायक दामोदर Savarkar, Vinayak Damodar [Author].
Publisher: दिल्ली, प्रभात प्रकाशन: 2023Description: 424p. ill.ISBN: 9789386300089.Other title: 1857 Ka Swatantraya Samar.Subject(s): Nationalism -- India -- History | Revolution Histories -- Indian History -- India | राष्ट्रवाद -- भारत -- इतिहास -- क्रांति इतिहासDDC classification: 954.035Item type | Current location | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 954.035 SAV-S (Browse shelf) | Available | 53994 |
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954.035 NIZ-B Bharat Ke Swatantrata Sangram Me Musalmano Ki Bhumika 1857-1947 Tak | 954.035 NIZ-B Bharat Ke Swatantrata Sangram Me Musalmano Ki Bhumika 1857-1947 Tak | 954.035 NIZ-B Bharat Ke Swatantrata Sangram Me Musalmano Ki Bhumika 1857-1947 Tak | 954.035 SAV-S 1857 का स्वातंत्रीय समर/ | 954.04 PRA-K खंडित भारत: | 954.04 SUR-D 1984 दिल्ली में शिखो पर हुए हमलो की रियल स्टोरी/ | 954.04092 DEE Deendayal Upadhyaya: sampoorna vangmaya |
भाग-१ ज्वालामुखी
प्रकरण-१ स्वधर्म और स्वराज्य
प्रकरण-२ कारण परंपरा
प्रकरण-३ नाना साहब और लक्ष्मीबाई
प्रकरण-४ अवध
प्रकरण-५ धकेलो उसमें...
प्रकरण-६ अग्नि में घी
प्रकरण-७ गुप्त संगठन
भाग-२ विस्फोट
प्रकरण-१ शहीद मंगल पांडे
प्रकरण-२ मेरठ
प्रकरण-३ दिल्ली
प्रकरण-४ मध्यांतर और पंजाब
प्रकरण-५ अलीगढ़ और नसीराबादह्लष् ऽअलीगढ़ और नसीराबादऽ
प्रकरण-६ रुहेलखंड
प्रकरण-७ बनारस और इलाहाबाद
प्रकरण-८ कानपुर और झाँसी
प्रकरण-९ अवध का रण
प्रकरण-१० संकलन
भाग-३ अग्नि-कल्लोल
प्रकरण-१ दिल्ली लड़ती है
प्रकरण-२ हैवलॉक
प्रकरण-३ बिहार
प्रकरण-४ दिल्ली हारी
प्रकरण-५ लखनऊ
भाग-४ अस्थायी शांति
वीर सावरकर रचित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ।
इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् 1990 में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से 1947 में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे।
इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंतःकरणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् 1857 का यथार्थ क्या है? क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था? योजना का स्वरूप क्या था? क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?
भारत की भावी पीढि़यों के लिए 1857 का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘1857 का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है। प्रत्येक देशभक्त भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
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