सामाजिक अनुसंधान की बिधियाँ/ जे.पी. सिंह
By: सिंह, जे.पी. J.P. Singh.
Publisher: जयपुर : रावत, 2021Description: xv, 529p. Contains Glossary.ISBN: 9788131611548.Other title: Samajik Anusandhan Ki Vidhiyan.Subject(s): सामाजिक अध्ययन | सामाजिक विज्ञान | नैतिकता और अनुसंधानDDC classification: 300.72 Summary: भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर व विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इस पुस्तक की रचना एक स्तरीय पाठ्यपुस्तक के रूप में की गई है। समाजशास्त्राीय एवं सांख्यिकीय अवधारणाओं का प्रामाणिक अनुवाद और उनके विश्लेषण के साथ-साथ पाश्चात्य विद्वानों के नाम का सही उच्चारण इस पुस्तक की विशेषता है। आमतौर पर हिन्दी की पुस्तकों में न तो तकनीकी शब्दों का शुद्ध अनुवाद और न ही लेखकों के नामों का शुद्ध उच्चारण देखने को मिलता है। अंग्रेजी माध्यम से अध्ययन करनेवाले पाठकों की अपेक्षा हिन्दी माध्यम से पठन-पाठन करनेवाले पाठक ज्ञान की दृष्टि से पीछे न रहें, इस बात का ध्यान रखा गया है। अंग्रेजी की नवीनतम उच्च स्तरीय पुस्तकों को आधार मानकर विभिन्न प्रकार के समाजशास्त्राीय एवं सांख्यिकीय तथ्यों को एकत्रित कर मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। लेखक ने स्वयं चार दशकों तक प्राथमिक एवं द्वितीयक आँकड़ों के आधर पर शोधकार्य किया तथा स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों को शिक्षण देने का कार्य किया है। उन्होंने उन तमाम अनुभवों को इस पुस्तक में सारांश रूप में देने का प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक विश्वसनीय समाजशास्त्रीय तथा सांख्यिकीय तथ्यों एवं सूचनाओं का रोचक भण्डार है। इसमें जटिल-से-जटिल विचारों को सहजता एवं सुगमता से प्रस्तुत किया गया है। प्रयास यही है कि इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों के बीच शोध-सम्बन्धी एक नयी समझ और दृष्टि उत्पन्न हो, क्योंकि भारत में सामाजिक शोध की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 300.72 SIN-S (Browse shelf) | Available | 54146 |
भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर व विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इस पुस्तक की रचना एक स्तरीय पाठ्यपुस्तक के रूप में की गई है। समाजशास्त्राीय एवं सांख्यिकीय अवधारणाओं का प्रामाणिक अनुवाद और उनके विश्लेषण के साथ-साथ पाश्चात्य विद्वानों के नाम का सही उच्चारण इस पुस्तक की विशेषता है। आमतौर पर हिन्दी की पुस्तकों में न तो तकनीकी शब्दों का शुद्ध अनुवाद और न ही लेखकों के नामों का शुद्ध उच्चारण देखने को मिलता है।
अंग्रेजी माध्यम से अध्ययन करनेवाले पाठकों की अपेक्षा हिन्दी माध्यम से पठन-पाठन करनेवाले पाठक ज्ञान की दृष्टि से पीछे न रहें, इस बात का ध्यान रखा गया है। अंग्रेजी की नवीनतम उच्च स्तरीय पुस्तकों को आधार मानकर विभिन्न प्रकार के समाजशास्त्राीय एवं सांख्यिकीय तथ्यों को एकत्रित कर मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। लेखक ने स्वयं चार दशकों तक प्राथमिक एवं द्वितीयक आँकड़ों के आधर पर शोधकार्य किया तथा स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों को शिक्षण देने का कार्य किया है। उन्होंने उन तमाम अनुभवों को इस पुस्तक में सारांश रूप में देने का प्रयास किया है।
प्रस्तुत पुस्तक विश्वसनीय समाजशास्त्रीय तथा सांख्यिकीय तथ्यों एवं सूचनाओं का रोचक भण्डार है। इसमें जटिल-से-जटिल विचारों को सहजता एवं सुगमता से प्रस्तुत किया गया है। प्रयास यही है कि इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों के बीच शोध-सम्बन्धी एक नयी समझ और दृष्टि उत्पन्न हो, क्योंकि भारत में सामाजिक शोध की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
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