समाजशास्त्र: एक मूल्यांकनात्मक परिचय/ ज्योति सिडाना.
By: सिडाना, ज्योति Jyoti Sidana.
Publisher: जयपुर: रावत, 2021Description: 398p. Include References.ISBN: 9788131610428.Other title: Samajshastra: Ek Mulyankanatmak Parichay.Subject(s): समाजीकरण | सामाजिक व्यवस्थाएँDDC classification: 301 Summary: नवजागरण का दौर समाज विज्ञानों एवं मानविकी विषयों के प्रति एवं उनके शिक्षाशास्त्रीय पक्षों को गुणात्मक रूप से प्रभावित करता है। कालान्तर में यही पक्ष संस्थापन समर्थक एवं संस्थापन विरोधी उन विचारधाराओं को जन्म देता है एवं विकसित करता है जो समाजशास्त्र को बहुआयामी बना देती है। साथ ही समाजशास्त्र को नागरिकीय चेतना व सामाजिक एकजुटता का प्रतिनिधि बना देती है। प्रस्तुत पाठ्य पुस्तक इस समूची प्रक्रिया को सरल परन्तु समाजशास्त्रीय शब्दावली में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। लेखक का यह प्रयास पुस्तक को समाजशास्त्र की पुस्तकों के बाजार में विशिष्ट बनाता है। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय अपने पूर्ववर्ती अध्याय को आगे ले जाता है। पुस्तक को नवीनतम ज्ञान प्रणाली के निकट लाने की पूरी कोशिश की गयी है जिसके कारण यह पुस्तक संदर्भ पुस्तक एव पाठ्य पुस्तक का मिश्रित रूप ले लेती है। इस पुस्तक में 18 अध्याय हैं जो समाज के अवधारणात्मक एवं सैद्धांतिक पक्षों को व्यावहारिक भाषा में प्रस्तुत करतें है। समाजशास्त्र की यह पुस्तक भारतीय विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों विशेषतः हिन्दी भाषी विद्यार्थियों को समाज की व्यापक समझ से परिचित कराने मे समर्थ होगी।Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 301 SID-S (Browse shelf) | Available | 54158 |
नवजागरण का दौर समाज विज्ञानों एवं मानविकी विषयों के प्रति एवं उनके शिक्षाशास्त्रीय पक्षों को गुणात्मक रूप से प्रभावित करता है। कालान्तर में यही पक्ष संस्थापन समर्थक एवं संस्थापन विरोधी उन विचारधाराओं को जन्म देता है एवं विकसित करता है जो समाजशास्त्र को बहुआयामी बना देती है। साथ ही समाजशास्त्र को नागरिकीय चेतना व सामाजिक एकजुटता का प्रतिनिधि बना देती है।
प्रस्तुत पाठ्य पुस्तक इस समूची प्रक्रिया को सरल परन्तु समाजशास्त्रीय शब्दावली में प्रस्तुत करने का एक प्रयास है। लेखक का यह प्रयास पुस्तक को समाजशास्त्र की पुस्तकों के बाजार में विशिष्ट बनाता है। पुस्तक का प्रत्येक अध्याय अपने पूर्ववर्ती अध्याय को आगे ले जाता है। पुस्तक को नवीनतम ज्ञान प्रणाली के निकट लाने की पूरी कोशिश की गयी है जिसके कारण यह पुस्तक संदर्भ पुस्तक एव पाठ्य पुस्तक का मिश्रित रूप ले लेती है। इस पुस्तक में 18 अध्याय हैं जो समाज के अवधारणात्मक एवं सैद्धांतिक पक्षों को व्यावहारिक भाषा में प्रस्तुत करतें है।
समाजशास्त्र की यह पुस्तक भारतीय विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों विशेषतः हिन्दी भाषी विद्यार्थियों को समाज की व्यापक समझ से परिचित कराने मे समर्थ होगी।
Hindi.
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