चार आँखों का खेल / बिमल मित्रा
By: मित्रा, बिमल Mitra, Bimal बिमल मित्रा [लेखक , Author.].
Publisher: प्रयागराज: लोकभारती प्रकाशन, 2013Description: 136p.ISBN: 9788180315299.Other title: Char Aankhon Ka Khel by Bimal Mitra.Subject(s): बंगाली साहित्य -- कथा साहित्य -- उपन्यास | बिमल मित्र – साहित्यिक योगदान -- आलोचना और व्याख्या -- बंगाली कथा साहित्य में स्थान | सामाजिक यथार्थवाद -- समाज और व्यक्ति के संबंध -- आधुनिक भारतीय समाज | मनोवैज्ञानिक उपन्यास -- पात्रों की मानसिकता -- व्यक्ति और समाज के अंतर्द्वंद्व | भारतीय साहित्य – आधुनिक युग -- बंगाली उपन्यास -- सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यDDC classification: 891.4434 Summary: दो मनुष्य देखने में एक जैसे नहीं होते—शायद दो फूल भी नहीं। जीवन के अनुभव भी विभिन्न और विचित्र होते हैं। एक के लिए जो सत्य है, वह दूसरे के लिए नहीं। इसीलिए जीवन के बहुत-से पहलू अछूते और अनदेखे रह जाते हैं। उनको छूना और देखना भी जोखिम से ख़ाली नहीं है। श्लील-अश्लील का सवाल आड़े पड़ता है। मिसेज डी’सा बड़ी भली औरत है। लेकिन पति की मृत्यु के बाद वह अपने बेटे के बराबर एक लड़के से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करती है। आदिम जैविक शुहग के आगे उसकी वह हार क्या सत्य नहीं है? है। उसी कटु सत्य को बिमल बाबू ने सुन्दर बनाया है। चहेते लड़के के हाथ अपने बेटे की हत्या के बाद भी मिसेज डी’सा उस सत्य से नहीं डिग सकी। न्यायाधीश के सामने अन्तिम गवाही के वक़्त भी उस चहेते लड़के की तरफ़ देखते ही वह हत्या का आरोप अपने ऊपर ले लेती है। नारी भी आख़िर मनुष्य है। नारीत्व मनुष्यत्व से अलग कोई चीज़ नहीं है। इसलिए नारीत्व के आगे मातृत्व की हार स्वाभाविक है। लेकिन उस स्वाभाविकता का बयान कितना मुश्किल है। इसे बिमल बाबू ने स्वीकार किया है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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891.443 AGR-L लम्बी कहानी और समकालीन परिदृश्य / | 891.443 RAY-W वाह बारह / | 891.4430093552 SHA-I Intimate Relations | 891.4434 MIT-C चार आँखों का खेल / | 891.4434 RAY-K कुल बराह / | 891.4434 RAY-S सुजन हरबोला / | 891.4435 MIS-P पाँच आँगनों वाला घर / |
दो मनुष्य देखने में एक जैसे नहीं होते—शायद दो फूल भी नहीं। जीवन के अनुभव भी विभिन्न और विचित्र होते हैं। एक के लिए जो सत्य है, वह दूसरे के लिए नहीं। इसीलिए जीवन के बहुत-से पहलू अछूते और अनदेखे रह जाते हैं। उनको छूना और देखना भी जोखिम से ख़ाली नहीं है। श्लील-अश्लील का सवाल आड़े पड़ता है।
मिसेज डी’सा बड़ी भली औरत है। लेकिन पति की मृत्यु के बाद वह अपने बेटे के बराबर एक लड़के से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करती है। आदिम जैविक शुहग के आगे उसकी वह हार क्या सत्य नहीं है? है। उसी कटु सत्य को बिमल बाबू ने सुन्दर बनाया है। चहेते लड़के के हाथ अपने बेटे की हत्या के बाद भी मिसेज डी’सा उस सत्य से नहीं डिग सकी। न्यायाधीश के सामने अन्तिम गवाही के वक़्त भी उस चहेते लड़के की तरफ़ देखते ही वह हत्या का आरोप अपने ऊपर ले लेती है।
नारी भी आख़िर मनुष्य है। नारीत्व मनुष्यत्व से अलग कोई चीज़ नहीं है। इसलिए नारीत्व के आगे मातृत्व की हार स्वाभाविक है। लेकिन उस स्वाभाविकता का बयान कितना मुश्किल है। इसे बिमल बाबू ने स्वीकार किया है।
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