झूला नट / मैत्रेयी पुष्पा
By: पुष्पा, मैत्रेयी [लेखक].
Publisher: नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन, 2018Description: 162p.ISBN: 9788126703845.Other title: Jhoola Nat by Maitreyi Pushpa.Subject(s): हिंदी उपन्यास -- सामाजिक यथार्थ -- आधुनिक हिंदी साहित्य | मैत्रेयी पुष्पा – साहित्यिक योगदान -- आलोचना और व्याख्या -- हिंदी कथा साहित्य | भारतीय समाज – ग्रामीण जीवन -- साहित्य में सामाजिक चित्रण -- समाज और वर्ग संघर्ष | हिंदी साहित्य में नारीवाद -- साहित्य में स्त्री दृष्टि -- स्त्री विमर्श और अधिकार | हिंदी कथा साहित्य – कथानक और शैली -- साहित्यिक विशेषताएँ -- कथा प्रवाह और चरित्र चित्रणDDC classification: 891.433 Summary: गाँव की साधारण–सी औरत है शीलोµन बहुत सुंदर और न बहुत सुघड़ लगभग अनपढ़µन उसने मनोविज्ञान पढ़ा है, न समाजशास्त्र जानती है । राजनीति और स्त्री–विमर्श की भाषा का भी उसे पता नहीं है । पति उसकी छाया से भागता है । मगर तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा की यह मार न शीलो को कुएँ–बावड़ी की ओर धकेलती है, और न आग लगाकर छुटकारा पाने की ओर । वशीकरण के सारे तीर–तरकश टूट जाने के बाद उसके पास रह जाता है जीने का नि:शब्द संकल्प और श्रम की ताकत एक अडिग धैर्य और स्त्री होने की जिजीविषा उसे लगता है कि उसके हाथ की छठी अंगुली ही उसका भाग्य लिख रही है और उसे ही बदलना होगा । झूला नट की शीलो हिंदी उपन्यास के कुछ न भूले जा सकने वाले चरित्रों में एक है । बेहद आत्मीय, पारिवारिक सहजता के साथ मैत्रेयी ने इस जटिल कहानी की नायिका शीलो और उसकी ‘स्त्री–शक्ति’ को फोकस किया है पता नहीं झूला नट शीलो की कहानी है या बालकिशन की . हाँ, अंत तक, प्रकृति और पुरुष की यह ‘लीला’ एक अप्रत्याशित उदात्त अर्थ में जरूर उद्भासित होने लगती है । निश्चय ही झूला नट हिंदी का एक विशिष्ट लघु–उपन्यास है|Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 891.433 PUS-J (Browse shelf) | Available | 54602 |
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891.4308 SAT-A आज़ाद बचपन की ओर | 891.4309 KAH- कहना ना होगा: | 891.4309 SIN-S सख़ुनतकिया/ by | 891.433 PUS-J झूला नट / | 891.4337 KUR-S समकालीन परिदृश्य और प्रभा खेतान के उपन्यास | 891.4371 VAJ-Y यहाँ से वहाँ / | 891.851 HAM- हमारे और अंधेरे के बीच : |
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गाँव की साधारण–सी औरत है शीलोµन बहुत सुंदर और न बहुत सुघड़ लगभग अनपढ़µन उसने मनोविज्ञान पढ़ा है, न समाजशास्त्र जानती है । राजनीति और स्त्री–विमर्श की भाषा का भी उसे पता नहीं है । पति उसकी छाया से भागता है । मगर तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा की यह मार न शीलो को कुएँ–बावड़ी की ओर धकेलती है, और न आग लगाकर छुटकारा पाने की ओर । वशीकरण के सारे तीर–तरकश टूट जाने के बाद उसके पास रह जाता है जीने का नि:शब्द संकल्प और श्रम की ताकत एक अडिग धैर्य और स्त्री होने की जिजीविषा उसे लगता है कि उसके हाथ की छठी अंगुली ही उसका भाग्य लिख रही है और उसे ही बदलना होगा । झूला नट की शीलो हिंदी उपन्यास के कुछ न भूले जा सकने वाले चरित्रों में एक है । बेहद आत्मीय, पारिवारिक सहजता के साथ मैत्रेयी ने इस जटिल कहानी की नायिका शीलो और उसकी ‘स्त्री–शक्ति’ को फोकस किया है पता नहीं झूला नट शीलो की कहानी है या बालकिशन की . हाँ, अंत तक, प्रकृति और पुरुष की यह ‘लीला’ एक अप्रत्याशित उदात्त अर्थ में जरूर उद्भासित होने लगती है । निश्चय ही झूला नट हिंदी का एक विशिष्ट लघु–उपन्यास है|
Hindi.
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