टेढ़ी लकीर / इस्मत चुगताई
By: चुगताई, इस्मत.
Publisher: नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन, 2021Description: 368p.ISBN: 9788171787944.Subject(s): हिंदी साहित्य | उपन्यासDDC classification: 891.439 Summary: टेढ़ी लकीर -- इस्मत चुग़ताई का यह उपन्यास कई अर्थों में बहुत महत्त्व रखता है । पहला तो ये कि यह उपन्यास इस्मत के और सभी उपन्यासों में सबसे सशक्त है । दूसरे, इस्मत को क़रीब से जानने वाले, इसे उनकी आपबीती भी मानते हैं । स्वयं इस्मत चुग़ताई ने भी इस बात को माना है । वह स्वयं लिखती हैं -- ‘‘कुछ लोगों ने ये भी कहा कि टेढ़ी लकीर मेरी आपबीती है मुझे खु़द आपबीती लगती है । मैंने इस नाविल को लिखते वक़्त बहुत कुछ महसूस किया है । मैंने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है, इसके साथ आँसू बहाए हैं और क़हक़हे लगाए हैं । इसकी कमज़ोरियों से जल भी उठी हूँ । इसकी हिम्मत की दाद भी दी है । इसकी नादानियों पर रहम भी आया है, और शरारतों पर प्यार भी आया है । इसके इश्क–मुहब्बत के कारनामों पर चटखारे भी लिए हैं, और हसरतों पर दु:ख भी हुआ है । ऐसी हालत में अगर मैं कहूँ कि मेरी आपबीती है तो कुछ ज़्यादा मुबालग़ा तो नहीं–––’’Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 891.439 CHU-T (Browse shelf) | Available | 54603 |
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891.43809 STR- स्त्री चिन्तन : | 891.438409 DAL-H हिंदू परम्पराओं का राष्ट्रीयकरण : | 891.4387109 MAL-R रामचन्द्र शुक्ल / | 891.439 CHU-T टेढ़ी लकीर / | 891.439 VAJ-N नक्षत्रहीन समय में / | 891.4390932 MAJ-W The world in words : | 891.44108 TAG-G Gitanjali: song offerings |
टेढ़ी लकीर -- इस्मत चुग़ताई का यह उपन्यास कई अर्थों में बहुत महत्त्व रखता है । पहला तो ये कि यह उपन्यास इस्मत के और सभी उपन्यासों में सबसे सशक्त है । दूसरे, इस्मत को क़रीब से जानने वाले, इसे उनकी आपबीती भी मानते हैं । स्वयं इस्मत चुग़ताई ने भी इस बात को माना है । वह स्वयं लिखती हैं -- ‘‘कुछ लोगों ने ये भी कहा कि टेढ़ी लकीर मेरी आपबीती है मुझे खु़द आपबीती लगती है । मैंने इस नाविल को लिखते वक़्त बहुत कुछ महसूस किया है । मैंने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है, इसके साथ आँसू बहाए हैं और क़हक़हे लगाए हैं । इसकी कमज़ोरियों से जल भी उठी हूँ । इसकी हिम्मत की दाद भी दी है । इसकी नादानियों पर रहम भी आया है, और शरारतों पर प्यार भी आया है । इसके इश्क–मुहब्बत के कारनामों पर चटखारे भी लिए हैं, और हसरतों पर दु:ख भी हुआ है । ऐसी हालत में अगर मैं कहूँ कि मेरी आपबीती है तो कुछ ज़्यादा मुबालग़ा तो नहीं–––’’
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