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कल परसों के बरसों By ममता कालिया

By: कालिया, ममता.
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2011Description: 140p.ISBN: 9789350007211.Other title: KAL PARSON KE BARSON.Subject(s): Hindi Fiction | Hindi LiteratureDDC classification: 891.433 Summary: स्मृति - आलेखों के इस संकलन में ममता कालिया एक नयी रचनात्मक भूमिका में सामने आती हैं। विभिन्न नगरों और संस्कृतियों में रहते हुए ममता बहुत से साहित्यकारों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों के सम्पर्क में आयीं। लेखिका के संवेदनशील मन पर इनका गहन प्रभाव पड़ा। ये संस्मरण केवल एक मुलाकात वाले रेखाचित्र नहीं वरन् सतत अनुभव सम्पन्नता के आलेख हैं। प्रस्तुत संकलन में एक ओर जैनेन्द्र कुमार, उपेन्द्रनाथ अश्क, चन्द्रकिरण सोनरेक्सा, श्रीलाल शुक्ल, मार्कण्डेय, अमरकांत और कमलेश्वर जैसे दिग्गज रचनाकारों की यादों के ख़ज़ाने हैं तो दूसरी ओर ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, गुलजार, रवीन्द्र कालिया और चित्रा मुद्गल जैसे समकालीन साथियों के। ये सभी सम्बन्ध धीरे-धीरे पनपे हैं- शास्त्रीय राग की तरह । साहित्य की सम्पदा जितनी यथार्थ पर टिकी होती है। उतनी ही स्मृति तथा कल्पना पर। संस्मरण विधा का वैभव स्मृतियों की पुनर्रचना में निहित होता है। 'कल परसों के बरसों' में सम्मिलित रचनाकार ममता की कलम से संजीवनी पाकर हँसते बोलते हमारे सामने आ खड़े होते हैं। इन स्मृति आलेखों के सिलसिले लम्बे रहे हैं। रचनाकार ने अपनी स्मृतियों की पोटली खोल कर इन विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक नयी रोशनी डाली है। जो कुछ भी जीवन और साहित्य के पक्ष में है, ममता कालिया उसके साथ अपनी पूरी रचनाधर्मिता के साथ खड़ी हैं। उनकी मित्र मण्डली व्यापक और रोचक है। लेखिका का विश्वास है कि जब तक स्मृति-संसार है तब तक साहित्य का संस्कार है और रहेगा। इन संस्मरणों को समय-समय पर पाठकों, आलोचकों की भरपूर सराहना प्राप्त हुई है।
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Books Books NASSDOC Library
891.433 KAL-K (Browse shelf) Available 54645

स्मृति - आलेखों के इस संकलन में ममता कालिया एक नयी रचनात्मक भूमिका में सामने आती हैं। विभिन्न नगरों और संस्कृतियों में रहते हुए ममता बहुत से साहित्यकारों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों के सम्पर्क में आयीं। लेखिका के संवेदनशील मन पर इनका गहन प्रभाव पड़ा। ये संस्मरण केवल एक मुलाकात वाले रेखाचित्र नहीं वरन् सतत अनुभव सम्पन्नता के आलेख हैं। प्रस्तुत संकलन में एक ओर जैनेन्द्र कुमार, उपेन्द्रनाथ अश्क, चन्द्रकिरण सोनरेक्सा, श्रीलाल शुक्ल, मार्कण्डेय, अमरकांत और कमलेश्वर जैसे दिग्गज रचनाकारों की यादों के ख़ज़ाने हैं तो दूसरी ओर ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, गुलजार, रवीन्द्र कालिया और चित्रा मुद्गल जैसे समकालीन साथियों के। ये सभी सम्बन्ध धीरे-धीरे पनपे हैं- शास्त्रीय राग की तरह । साहित्य की सम्पदा जितनी यथार्थ पर टिकी होती है। उतनी ही स्मृति तथा कल्पना पर। संस्मरण विधा का वैभव स्मृतियों की पुनर्रचना में निहित होता है। 'कल परसों के बरसों' में सम्मिलित रचनाकार ममता की कलम से संजीवनी पाकर हँसते बोलते हमारे सामने आ खड़े होते हैं। इन स्मृति आलेखों के सिलसिले लम्बे रहे हैं। रचनाकार ने अपनी स्मृतियों की पोटली खोल कर इन विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक नयी रोशनी डाली है। जो कुछ भी जीवन और साहित्य के पक्ष में है, ममता कालिया उसके साथ अपनी पूरी रचनाधर्मिता के साथ खड़ी हैं। उनकी मित्र मण्डली व्यापक और रोचक है। लेखिका का विश्वास है कि जब तक स्मृति-संसार है तब तक साहित्य का संस्कार है और रहेगा। इन संस्मरणों को समय-समय पर पाठकों, आलोचकों की भरपूर सराहना प्राप्त हुई है।

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