काके दी हट्टी / ममता कालिया
By: कालिया, ममता.
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2015Description: 160p.ISBN: 9789350002483.Other title: KAKE DI HATTI.Subject(s): Hindi Fiction | Hindi LiteratureDDC classification: 891.433 Summary: ममता कालिया की कहानियाँ नई कहानी के विस्तार से अधिक उसका प्रतिवाद हैं। सातवें दशक की कहानी में संबंधों से बाहर आने की चेतना स्पष्ट है। राजेन्द्र यादव नई कहानी को 'संबंध' को आधार बना कर ही समझने और परिभाषित करने की कोशिश करते हैं। ममता कालिया अपनी पीढ़ी के अन्य कहानीकारों की तरह ही इसे समझने में अधिक समय नहीं लेतीं कि अपने निजी जीवन के सुख-दुख और प्रेम की चुहलों से कहानी को बाँधे रख कर उसे वयस्क नहीं बनाया जा सकता। उनकी कहानियाँ स्त्री-पुरुष संबंधों को पर्याप्त महत्त्व देने पर भी उसी को सब कुछ मानने से इनकार करती हैं। वे समूचे मध्यवर्ग की स्त्री को केन्द्र में रखकर जटिल सामाजिक संरचना में स्त्री की स्थिति और नियति को परिभाषित करती हैं। उनकी स्त्री इसे अच्छी तरह समझती है कि अपनी आज़ादी की लड़ाई को मुल्क की आज़ादी की लड़ाई की तरह ही लड़ना होता है और जिस कीमत पर यह आज़ादी मिलती है, उसी हिसाब से उसकी कद्र की जाती है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 891.433 KAL-K (Browse shelf) | Available | 54649 |
ममता कालिया की कहानियाँ नई कहानी के विस्तार से अधिक उसका प्रतिवाद हैं। सातवें दशक की कहानी में संबंधों से बाहर आने की चेतना स्पष्ट है। राजेन्द्र यादव नई कहानी को 'संबंध' को आधार बना कर ही समझने और परिभाषित करने की कोशिश करते हैं। ममता कालिया अपनी पीढ़ी के अन्य कहानीकारों की तरह ही इसे समझने में अधिक समय नहीं लेतीं कि अपने निजी जीवन के सुख-दुख और प्रेम की चुहलों से कहानी को बाँधे रख कर उसे वयस्क नहीं बनाया जा सकता। उनकी कहानियाँ स्त्री-पुरुष संबंधों को पर्याप्त महत्त्व देने पर भी उसी को सब कुछ मानने से इनकार करती हैं। वे समूचे मध्यवर्ग की स्त्री को केन्द्र में रखकर जटिल सामाजिक संरचना में स्त्री की स्थिति और नियति को परिभाषित करती हैं। उनकी स्त्री इसे अच्छी तरह समझती है कि अपनी आज़ादी की लड़ाई को मुल्क की आज़ादी की लड़ाई की तरह ही लड़ना होता है और जिस कीमत पर यह आज़ादी मिलती है, उसी हिसाब से उसकी कद्र की जाती है।
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