कुछ खोजते हुए / अशोक वाजपेई
By: अशोक वाजपेई.
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2012Description: 730p.ISBN: 9789350722046.Other title: Kuch Khojte Huye.Subject(s): Hindi Literature | Hindi FictionDDC classification: 891.4308 Summary: यहकहनायाठीक-ठीकबतापानाकठिनहैकिइसज़िन्दगीभरसेचलीआरहीखोजकालक्ष्यक्याहै? बिनालक्ष्यकेयाकिसीप्राप्तिकीआशाकेखोजक्योंनहींकीजासकती? अगरयहसम्भवहै, भलेकुछअतर्कितहैतोइनपृष्ठोंमेंजोकुछखोजाजातारहाहैइसकाकुछऔचित्यबनताहै।खोजनेकीप्रक्रियामेंकुछसच, कुछसपने, कुछरहस्य, कुछजिज्ञासाएँ, कुछउम्मीदें, कुछविफलताएँसबगुंथेहुए-सेहैं।शायदकोईभीलेखककुछपानेकेलिएनहींखोजता : कईबारअकस्मात्अप्रत्याशितरूपसेउसकेहाथकुछलगजाताहै।कईबारवहकुछ, इससेपहलेकिलेखककोइसकासजगबोधहोयाकिवहउसेविन्यस्तकरपायेवहफिसलभीजाताहैऔरकईबारऐसेगायबहोजाताहैकिदुबाराफिरखोजेनहींमिलता।एकसाप्ताहिकस्तम्भकेबहानेअपनीऐसीहीबेढबखोजकोदर्ज़करतारहाहूँ।इसमेंसंस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, पुस्तकऔरकलासमीक्षा, इधर-उधरहुएसंवादऔरमिलगयेव्यक्तियोंसेबातचीतआदिसभीसंक्षेपमेंशामिलहैं।मुझजैसेबातूनीव्यक्तिको, 'जनसत्ता' मेंपिछलेतेरहवर्षोंसे, बिलानागा, अबाधरूपसे 'कभीकभार' स्तम्भलिखतेहुएयहअहसासहुआकिसंक्षेपलेखनकाबेहदवांछनीयपक्षहै।जोसंक्षेपमेंकुछपतेकीबातनहींकरसकतावहविस्तारमेंऐसाकरपायेगाइसमेंअबकुछसन्देहहोनेलगाहै।ऐसेपाठकयाहितैषीमिलतेहैंजिनकीशिकायतकईबारयहहोतीहैकिविस्तारसेलिखनाचाहिएथा।यहउन 'चाहियों' मेंसेएकहैजोमुझसेनहींसधे।जैसेलिखनातोमुझेथाडायरी, जोअबजब-जैसीयादआतीहैइसीस्तम्भमेंलिखदेताहूँ : डायरीनहींलिखपाया।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|
![]() |
NASSDOC Library | 891.4308 VAJ-K (Browse shelf) | Available | 54651 |
Browsing NASSDOC Library Shelves Close shelf browser
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
891.4308 NAG-C; Vol.2 नागार्जुन: चुनी हुई रचनाएँ / | 891.4308 NAG-C; Vol.3 नागार्जुन: चुनी हुई रचनाएँ / | 891.4308 SAT-A आज़ाद बचपन की ओर | 891.4308 VAJ-K कुछ खोजते हुए / | 891.4309 KAH- कहना ना होगा: | 891.4309 SIN-B भाषा साहित्य और संस्कृति शिक्षण/ | 891.4309 SIN-S सख़ुनतकिया/ by |
यहकहनायाठीक-ठीकबतापानाकठिनहैकिइसज़िन्दगीभरसेचलीआरहीखोजकालक्ष्यक्याहै? बिनालक्ष्यकेयाकिसीप्राप्तिकीआशाकेखोजक्योंनहींकीजासकती? अगरयहसम्भवहै, भलेकुछअतर्कितहैतोइनपृष्ठोंमेंजोकुछखोजाजातारहाहैइसकाकुछऔचित्यबनताहै।खोजनेकीप्रक्रियामेंकुछसच, कुछसपने, कुछरहस्य, कुछजिज्ञासाएँ, कुछउम्मीदें, कुछविफलताएँसबगुंथेहुए-सेहैं।शायदकोईभीलेखककुछपानेकेलिएनहींखोजता : कईबारअकस्मात्अप्रत्याशितरूपसेउसकेहाथकुछलगजाताहै।कईबारवहकुछ, इससेपहलेकिलेखककोइसकासजगबोधहोयाकिवहउसेविन्यस्तकरपायेवहफिसलभीजाताहैऔरकईबारऐसेगायबहोजाताहैकिदुबाराफिरखोजेनहींमिलता।एकसाप्ताहिकस्तम्भकेबहानेअपनीऐसीहीबेढबखोजकोदर्ज़करतारहाहूँ।इसमेंसंस्मरण, यात्रा-वृत्तान्त, पुस्तकऔरकलासमीक्षा, इधर-उधरहुएसंवादऔरमिलगयेव्यक्तियोंसेबातचीतआदिसभीसंक्षेपमेंशामिलहैं।मुझजैसेबातूनीव्यक्तिको, 'जनसत्ता' मेंपिछलेतेरहवर्षोंसे, बिलानागा, अबाधरूपसे 'कभीकभार' स्तम्भलिखतेहुएयहअहसासहुआकिसंक्षेपलेखनकाबेहदवांछनीयपक्षहै।जोसंक्षेपमेंकुछपतेकीबातनहींकरसकतावहविस्तारमेंऐसाकरपायेगाइसमेंअबकुछसन्देहहोनेलगाहै।ऐसेपाठकयाहितैषीमिलतेहैंजिनकीशिकायतकईबारयहहोतीहैकिविस्तारसेलिखनाचाहिएथा।यहउन 'चाहियों' मेंसेएकहैजोमुझसेनहींसधे।जैसेलिखनातोमुझेथाडायरी, जोअबजब-जैसीयादआतीहैइसीस्तम्भमेंलिखदेताहूँ : डायरीनहींलिखपाया।
Hindi
There are no comments for this item.