नामवर की दृष्टि में मुक्तिबोध/ नामवर सिंह ; ए. अरविदाछन; विजय प्रकाश सिंह
By: सिंह ,नामवर.
Contributor(s): अरविदाछन, ए | सिंह, विजय प्रकाश.
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन , 2021Description: 152p.ISBN: 9789390678273.Other title: Namwar Ki Drishti Mein Muktibodh.Subject(s): Hindi literature—History and criticismDDC classification: 891.433109 Summary: मुक्तिबोध की भाषा पर अनगढ़ता का आरोप लगाते समय इस बारे में सोच देखना चाहिए कि जिस तिलिस्मी दुनिया की सृष्टि वे कविता में कर ले जाते हैं वह क्या असमर्थ भाषा से कभी सम्भव है ? वस्तुतः 'अँधेरे में' का ख़ौफ़नाक काव्य-संसार समर्थ भाषा की ही सृष्टि है। मुक्तिबोध जब कहते हैं कि “बिम्ब फेंकती वेदना नदियाँ” तो वे एक तरह से उस कवि-कल्पना की ओर भी संकेत करते हैं जो अपनी अजस्र सृजनशीलता में बिम्ब फेंकती चलती है। वस्तुतः कवि की शक्ति कल्पना के उस वेग और विस्तार से मापी जाती है जिसे अंग्रेज़ी में ‘स्वीप ऑफ़ इमेजिनेशन' कहते हैं; और कहना न होगा कि 'अँधेरे में' की कल्पना-शक्ति अपने समवर्ती समस्त कवियों में सबसे विकट और विस्तृत है। इसीलिए वे प्रगीतों के युग में भी महाकाव्यात्मक कल्पना के धनी और नाटकीय प्रतिभा के प्रयोगकर्ता हैं। वस्तुतः मुक्तिबोध की अभिव्यक्ति की अर्थवत्ता फटकल शब्द-प्रयोगों से नहीं आंकी जा सकती और न दो-चार बिम्बों अथवा भाव-चित्रों से मापी जा सकती है। उनकी अभिव्यक्ति की गरिमा का पता उस विराट बिम्ब-लोक से चलता है जो ‘अँधेरे में जैसी महाकाव्यात्मक कविता अपनी समग्रता में प्रस्तुत करती है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 891.433109 SIN-N (Browse shelf) | Available | 54659 |
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891.43308 KAL-N निर्मोही / | 891.43308 REN-P प्राणों में घुले हुए रंग / | 891.43309 MAD-S समय, समाज और उपन्यास / | 891.433109 SIN-N नामवर की दृष्टि में मुक्तिबोध/ | 891.4335 NAR-P प्रेमचन्द : | 891.4335 PAR-D दो नाक वाले लोग / | 891.4335 PRE-G गोदान / |
मुक्तिबोध की भाषा पर अनगढ़ता का आरोप लगाते समय इस बारे में सोच देखना चाहिए कि जिस तिलिस्मी दुनिया की सृष्टि वे कविता में कर ले जाते हैं वह क्या असमर्थ भाषा से कभी सम्भव है ? वस्तुतः 'अँधेरे में' का ख़ौफ़नाक काव्य-संसार समर्थ भाषा की ही सृष्टि है। मुक्तिबोध जब कहते हैं कि “बिम्ब फेंकती वेदना नदियाँ” तो वे एक तरह से उस कवि-कल्पना की ओर भी संकेत करते हैं जो अपनी अजस्र सृजनशीलता में बिम्ब फेंकती चलती है। वस्तुतः कवि की शक्ति कल्पना के उस वेग और विस्तार से मापी जाती है जिसे अंग्रेज़ी में ‘स्वीप ऑफ़ इमेजिनेशन' कहते हैं; और कहना न होगा कि 'अँधेरे में' की कल्पना-शक्ति अपने समवर्ती समस्त कवियों में सबसे विकट और विस्तृत है। इसीलिए वे प्रगीतों के युग में भी महाकाव्यात्मक कल्पना के धनी और नाटकीय प्रतिभा के प्रयोगकर्ता हैं। वस्तुतः मुक्तिबोध की अभिव्यक्ति की अर्थवत्ता फटकल शब्द-प्रयोगों से नहीं आंकी जा सकती और न दो-चार बिम्बों अथवा भाव-चित्रों से मापी जा सकती है। उनकी अभिव्यक्ति की गरिमा का पता उस विराट बिम्ब-लोक से चलता है जो ‘अँधेरे में जैसी महाकाव्यात्मक कविता अपनी समग्रता में प्रस्तुत करती है।
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