निर्मोही / ममता कालिया
By: कालिया, ममता.
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2020Description: 134p.ISBN: 9788181431059.Other title: Nirmohi.Subject(s): Hindi Literature | Hindi FictionDDC classification: 891.43308 Summary: ममता कालिया की कहानियाँ नयी कहानी के विस्तार से अधिक उसका प्रतिवाद हैं। सातवें दशक की कहानी में सम्बन्धों से बाहर आने की चेतना स्पष्ट है। राजेन्द्र यादव नयी कहानी को ‘सम्बन्ध' को आधार बनाकर ही समझने और परिभाषित करने की कोशिश करते हैं। ममता कालिया अपनी पीढ़ी के अन्य कहानीकारों की तरह ही इसे समझने में अधिक समय नहीं लेतीं कि अपने निजी जीवन के सुख-दुख और प्रेम की चुहलों से कहानी को बाँधे रखकर उसे वयस्क नहीं बनाया जा सकता। उनकी कहानियाँ स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को पर्याप्त महत्त्व देने पर भी उसी को सब कुछ मानने से इनकार करती हैं। वे समूचे मध्य वर्ग की स्त्री को केन्द्र में रखकर जटिल सामाजिक संरचना में स्त्री की स्थिति और नियति को परिभाषित करती हैं। उनकी स्त्री इसे अच्छी तरह समझती है कि अपनी आज़ादी की लड़ाई को मुल्क की आज़ादी की लड़ाई की तरह ही लड़ना होता है और जिस कीमत पर यह आज़ादी मिलती है, उसी हिसाब से उसकी कद्र की जाती है। संरचना की दृष्टि से ममता कालिया की ये कहानियाँ उस औपन्यासिक विस्तार से मुक्त हैं जिसके कारण ही कृष्णा सोबती की अनेक कहानियों को आसानी से उपन्यास मान लिया जाता रहा है। काव्य-उपकरणों के उपयोग में भी वे पर्याप्त संयत और सन्तुलित हैं। वे सीधी, अर्थगर्भी और पारदर्शी भाषा के उपयोग पर बल देती हुई अकारण ब्यौरा और स्फीति से बचती हैं। भारतीय राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व के टूटने और नक्सलवाद जैसी परिघटना का कोई संकेत भले ही ममता कालिया की कहानियों में न मिलता हो, जैसा वह उनके ही अन्य समकालीन अनेक कहानीकारों में आसानी से लक्षित किया जा सकता है, लेकिन फिर भी अपनी प्रकृति में वे नयी कहानी की सम्बन्ध-आधारित कहानियों की तुलना में कहीं अधिक राजनीतिक हैं। देश में बढ़ी और फैली अराजकता एवं विद्रूपताओं से सबसे अधिक गहराई से स्त्री ही प्रभावित हुई है। यह अकारण नहीं है कि उनकी भाषा में एक ख़ास तरह की तुर्शी है जिसकी मदद से वे सामाजिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य का बहुत सधा और सीधा उपयोग करती हैं। नयी कहानी के जिन लेखकों को ममता कालिया अपने बहुत निकट और आत्मीय पाती हैं, इसे फिर दोहराया जा सकता है, वे परसाई और अमरकान्त ही हैं।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 891.43308 KAL-N (Browse shelf) | Available | 54660 |
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891.433 VIC- विचार का आइना: | 891.433 YAS-A अमिता / | 891.433008 KAL-P पच्चीस साल की लड़की / | 891.43308 KAL-N निर्मोही / | 891.43308 REN-P प्राणों में घुले हुए रंग / | 891.43309 MAD-S समय, समाज और उपन्यास / | 891.433109 SIN-N नामवर की दृष्टि में मुक्तिबोध/ |
ममता कालिया की कहानियाँ नयी कहानी के विस्तार से अधिक उसका प्रतिवाद हैं। सातवें दशक की कहानी में सम्बन्धों से बाहर आने की चेतना स्पष्ट है। राजेन्द्र यादव नयी कहानी को ‘सम्बन्ध' को आधार बनाकर ही समझने और परिभाषित करने की कोशिश करते हैं। ममता कालिया अपनी पीढ़ी के अन्य कहानीकारों की तरह ही इसे समझने में अधिक समय नहीं लेतीं कि अपने निजी जीवन के सुख-दुख और प्रेम की चुहलों से कहानी को बाँधे रखकर उसे वयस्क नहीं बनाया जा सकता। उनकी कहानियाँ स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को पर्याप्त महत्त्व देने पर भी उसी को सब कुछ मानने से इनकार करती हैं। वे समूचे मध्य वर्ग की स्त्री को केन्द्र में रखकर जटिल सामाजिक संरचना में स्त्री की स्थिति और नियति को परिभाषित करती हैं। उनकी स्त्री इसे अच्छी तरह समझती है कि अपनी आज़ादी की लड़ाई को मुल्क की आज़ादी की लड़ाई की तरह ही लड़ना होता है और जिस कीमत पर यह आज़ादी मिलती है, उसी हिसाब से उसकी कद्र की जाती है। संरचना की दृष्टि से ममता कालिया की ये कहानियाँ उस औपन्यासिक विस्तार से मुक्त हैं जिसके कारण ही कृष्णा सोबती की अनेक कहानियों को आसानी से उपन्यास मान लिया जाता रहा है। काव्य-उपकरणों के उपयोग में भी वे पर्याप्त संयत और सन्तुलित हैं। वे सीधी, अर्थगर्भी और पारदर्शी भाषा के उपयोग पर बल देती हुई अकारण ब्यौरा और स्फीति से बचती हैं। भारतीय राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व के टूटने और नक्सलवाद जैसी परिघटना का कोई संकेत भले ही ममता कालिया की कहानियों में न मिलता हो, जैसा वह उनके ही अन्य समकालीन अनेक कहानीकारों में आसानी से लक्षित किया जा सकता है, लेकिन फिर भी अपनी प्रकृति में वे नयी कहानी की सम्बन्ध-आधारित कहानियों की तुलना में कहीं अधिक राजनीतिक हैं। देश में बढ़ी और फैली अराजकता एवं विद्रूपताओं से सबसे अधिक गहराई से स्त्री ही प्रभावित हुई है। यह अकारण नहीं है कि उनकी भाषा में एक ख़ास तरह की तुर्शी है जिसकी मदद से वे सामाजिक विद्रूपताओं पर व्यंग्य का बहुत सधा और सीधा उपयोग करती हैं। नयी कहानी के जिन लेखकों को ममता कालिया अपने बहुत निकट और आत्मीय पाती हैं, इसे फिर दोहराया जा सकता है, वे परसाई और अमरकान्त ही हैं।
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