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बात बात में बात/ नामवर सिंह

By: सिंह, नामवर.
Contributor(s): समीक्षा ठाकुर [संकलन सम्पादन].
Publisher: नई दिल्ली; वाणी प्रकाशन, 2013Edition: 2nd.Description: 352p.ISBN: 9788181435842.Other title: Baat Baat Mein Baat/ Namvar Singh.Subject(s): Hindi literature | Indian literatureDDC classification: 891.432 Summary: मैं अपने तईं मानता हूँ कि आलोचक को दो भूमिकाएँ निभानी चाहिए। आलोचक वही काम करता है जो फौज में, जिसे सैपर्स एण्ड माइनर्स' करते हैं, इंजीनियर करता है। फौज के मार्च करने से पहले झाड़-जंगल साफ करके नदी-नाले पर जरूरी पुल बनाते हुए फौज को आगे बढ़ने के लिए रास्ता तैयार करने का जोखिम उठाए, सड़क बनाए। साहित्य में इस रूपक के माध्यम से मैं कहूँ कि जहाँ विचारों, विचारधाराओं, राजनीतिक सामाजिक प्रश्नों आदि के बारे में उलझनें हैं, वह अपने विचारों के माध्यम से थोड़ा सुलझाए, कोई बना-बनाया विचार न दे ताकि रचनाकारों को स्वयं अपने लिए सुविधा हो। ये मैं आलोचक के लिए 'सैपर्स एण्ड माइनर्स' की भूमिका मानता हूँ क्योंकि आगे-आगे वही चलता है और पहले वही मारा जाता है। दुश्मन आ रहा है तो जोखिम उठाने के लिए सबसे पहले मोर्चे पर वही बढ़ता है और ज़ख्मी होने का ख़तरा भी वही उठाता है। यह काम आलोचक करता है और उसे करना भी चाहिए। क्योंकि हम रचनाकारों के लिए रास्ता बनाने की कोशिश करते हैं। यह एक काम हुआ। दूसरा, रास्ता बनाने के साथ ही वह उनके साथ-साथ चलता भी है। वह रचनाकार का सहचर है। इसलिए आलोचक को 'सहृदय' कहते हैं। समान हृदय वाला। आलोचक को किसी की आलोचना करने से पहले उसी भावभूमि पर होने चाहिए जिस भाव भूमि पर पहुँचकर रचनाकार रचना कर रहा है। गुण दोष बाद में देखना चाहिए। लेकिन जिस लहर मान पर वह है, आप मन से वहीं पहुँचे। और वहीं पहुँचकर देखें कि सचमुच वो कहाँ है? कहाँ से बोल रहा है? निराला जी के शब्दों में वह किस कोठे से बोल रहा है ? इसलिए आलोचक-कर्म जो है मूलतः सहृदय का है। आलोचक न्यायाधीश नहीं है। है तो वह वकील और ऐसा वकील जो सफाई पक्ष का है, 'डिफेंस का है मुख्य रूप से, और डिफेंस का ऐसा ईमानदार वकील जो अपना केस लेकर आने वालों को सब बता देता है कि तुम्हारा केस कमजोर है, कहाँ हो ? कैसे हो? बावजूद इसके वे उसे बचाने की कोशिश करते हैं।
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मैं अपने तईं मानता हूँ कि आलोचक को दो भूमिकाएँ निभानी चाहिए। आलोचक वही काम करता है जो फौज में, जिसे सैपर्स एण्ड माइनर्स' करते हैं, इंजीनियर करता है। फौज के मार्च करने से पहले झाड़-जंगल साफ करके नदी-नाले पर जरूरी पुल बनाते हुए फौज को आगे बढ़ने के लिए रास्ता तैयार करने का जोखिम उठाए, सड़क बनाए। साहित्य में इस रूपक के माध्यम से मैं कहूँ कि जहाँ विचारों, विचारधाराओं, राजनीतिक सामाजिक प्रश्नों आदि के बारे में उलझनें हैं, वह अपने विचारों के माध्यम से थोड़ा सुलझाए, कोई बना-बनाया विचार न दे ताकि रचनाकारों को स्वयं अपने लिए सुविधा हो। ये मैं आलोचक के लिए 'सैपर्स एण्ड माइनर्स' की भूमिका मानता हूँ क्योंकि आगे-आगे वही चलता है और पहले वही मारा जाता है। दुश्मन आ रहा है तो जोखिम उठाने के लिए सबसे पहले मोर्चे पर वही बढ़ता है और ज़ख्मी होने का ख़तरा भी वही उठाता है। यह काम आलोचक करता है और उसे करना भी चाहिए।
क्योंकि हम रचनाकारों के लिए रास्ता बनाने की कोशिश करते हैं। यह एक काम हुआ। दूसरा, रास्ता बनाने के साथ ही वह उनके साथ-साथ चलता भी है। वह रचनाकार का सहचर है। इसलिए आलोचक को 'सहृदय' कहते हैं। समान हृदय वाला। आलोचक को किसी की आलोचना करने से पहले उसी भावभूमि पर होने चाहिए जिस भाव भूमि पर पहुँचकर रचनाकार रचना कर रहा है। गुण दोष बाद में देखना चाहिए। लेकिन जिस लहर मान पर वह है, आप मन से वहीं पहुँचे। और वहीं पहुँचकर देखें कि सचमुच वो कहाँ है? कहाँ से बोल रहा है? निराला जी के शब्दों में वह किस कोठे से बोल रहा है ? इसलिए आलोचक-कर्म जो है मूलतः सहृदय का है।
आलोचक न्यायाधीश नहीं है। है तो वह वकील और ऐसा वकील जो सफाई पक्ष का है, 'डिफेंस का है मुख्य रूप से, और डिफेंस का ऐसा ईमानदार वकील जो अपना केस लेकर आने वालों को सब बता देता है कि तुम्हारा केस कमजोर है, कहाँ हो ? कैसे हो? बावजूद इसके वे उसे बचाने की कोशिश करते हैं।

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