भाषा, संस्कृति और लोक
Contributor(s): दयानिधि मिश्र [प्रधान सम्पादक] | दिलीप सिंह [सम्पादक].
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2015Edition: 2nd.Description: 204p.ISBN: 9789350721681.Other title: BHASHA SANSKRITI AUR LOK DAYANIDHI MISHRA.Subject(s): Language | CultureDDC classification: 398.2095452 Summary: पं. विद्यानिवास मिश्र की प्रतिभा का प्रस्फुटन अनेकानेक सोतों में प्रवाहित है। उनकी प्रतिभा की सहजता और सौम्यता का कोई सानी नहीं। संस्कृत, हिन्दी और संस्कृति के मेल से उनका व्याकरणिक अध्ययन भी भारतीयता की पीठिका बन पाता है और उनके सृजनात्मक साहित्य में भाषा, आचरण और सभ्यता से आबद्ध मानुस-व्यवहार की वे सभी परतें छवि बन कर उभार पाती हैं जिनसे जीवन और समाज की गति अग्रगामी बनती है। प्रस्तुत पुस्तक में पंडित जी की इसी प्रतिभा के कतिपय पक्षों को छूने का प्रयास नये-पुराने लोगों ने किया है। आलेख तो एक बहाना है, पंडित जी की मानस-छवि को प्रतिबिंबित करने का परम्परा की नव्य व्याख्या करने वाले एक चिन्तक की आधुनिकता के कई कोणों को यहाँ पाठक महसूस कर सकेंगे। पंडित विद्यानिवास मिश्र और उनकी पत्नी श्रीमती राधिका देवी की पुण्य स्मृति में स्थापित 'विद्याश्री न्यास' की प्रकाशन योजना का यह पहला पुष्प है। भविष्य में 'व्याकरण-विमर्श', 'समसामयिक काव्य भाषा', 'अद्यतन भाषाविज्ञान' तथा 'संस्कृति, संदर्भ और भाषा', जैसे विषयों पर केन्द्रित पुस्तकें इस श्रृंखला में प्रकाशित करने की योजना है। कहना न होगा कि इन सभी बौद्धिक विमर्शों के प्रति पंडित जी का गहरा रुझान था। उनका लेखन इस बात की साफ-साफ गवाही देता है। पंडित विद्यानिवास मिश्र ने ज्ञान की शाखाओं को जिस मोड़ पर छोड़ा है उसके आगे की राह का संकेत देना भी वे नहीं भूले हैं। बड़े चिन्तक सम्भवतः इसीलिए लम्बे समय तक प्रासंगिक बने रहते हैं। पंडित जी के थोड़े-बहुत संकेतों के सहारे पुस्तक के आलेख संकलित किए या लिखे गये हैं। इसीलिए पंडित जी हर कहीं उपस्थित हैं - प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में। आधुनिक भाषावैज्ञानिक चिन्तन के व्यावहारिक पक्ष को यह किताब जगह-जगह विश्लेषणात्मक पद्धति को अपनाते हुए उजागर करती है। वैचारिक स्तर पर पुस्तक पठनीय है तो आत्मीय धरातल पर पंडित जी। के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि।Item type | Current location | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | हिंदी पुस्तकों पर विशेष संग्रह | 398.2095452 BHA- (Browse shelf) | Available | 54670 |
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379.0954 AGG-; SL1 Nayieeshiksha neeti | 382.09154 IYA-U Unnat Bharat: viksit rashtra se vishva shakti banne ka blueprint | 398.0954123 BAD-B Bihar ki lok kalaen evam shilp | 398.2095452 BHA- भाषा, संस्कृति और लोक | 398.9912 VAS-S सम्पूर्ण चाणक्य नीति | 413.0954 KUM-I; V 1 भारतीय कोश | 413.0954 KUM-I; V 2 भारतीय कोश |
पं. विद्यानिवास मिश्र की प्रतिभा का प्रस्फुटन अनेकानेक सोतों में प्रवाहित है। उनकी प्रतिभा की सहजता और सौम्यता का कोई सानी नहीं। संस्कृत, हिन्दी और संस्कृति के मेल से उनका व्याकरणिक अध्ययन भी भारतीयता की पीठिका बन पाता है और उनके सृजनात्मक साहित्य में भाषा, आचरण और सभ्यता से आबद्ध मानुस-व्यवहार की वे सभी परतें छवि बन कर उभार पाती हैं जिनसे जीवन और समाज की गति अग्रगामी बनती है। प्रस्तुत पुस्तक में पंडित जी की इसी प्रतिभा के कतिपय पक्षों को छूने का प्रयास नये-पुराने लोगों ने किया है। आलेख तो एक बहाना है, पंडित जी की मानस-छवि को प्रतिबिंबित करने का परम्परा की नव्य व्याख्या करने वाले एक चिन्तक की आधुनिकता के कई कोणों को यहाँ पाठक महसूस कर सकेंगे। पंडित विद्यानिवास मिश्र और उनकी पत्नी श्रीमती राधिका देवी की पुण्य स्मृति में स्थापित 'विद्याश्री न्यास' की प्रकाशन योजना का यह पहला पुष्प है। भविष्य में 'व्याकरण-विमर्श', 'समसामयिक काव्य भाषा', 'अद्यतन भाषाविज्ञान' तथा 'संस्कृति, संदर्भ और भाषा', जैसे विषयों पर केन्द्रित पुस्तकें इस श्रृंखला में प्रकाशित करने की योजना है। कहना न होगा कि इन सभी बौद्धिक विमर्शों के प्रति पंडित जी का गहरा रुझान था। उनका लेखन इस बात की साफ-साफ गवाही देता है। पंडित विद्यानिवास मिश्र ने ज्ञान की शाखाओं को जिस मोड़ पर छोड़ा है उसके आगे की राह का संकेत देना भी वे नहीं भूले हैं। बड़े चिन्तक सम्भवतः इसीलिए लम्बे समय तक प्रासंगिक बने रहते हैं। पंडित जी के थोड़े-बहुत संकेतों के सहारे पुस्तक के आलेख संकलित किए या लिखे गये हैं। इसीलिए पंडित जी हर कहीं उपस्थित हैं - प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में। आधुनिक भाषावैज्ञानिक चिन्तन के व्यावहारिक पक्ष को यह किताब जगह-जगह विश्लेषणात्मक पद्धति को अपनाते हुए उजागर करती है। वैचारिक स्तर पर पुस्तक पठनीय है तो आत्मीय धरातल पर पंडित जी। के प्रति एक भावभीनी श्रद्धांजलि।
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