कितने प्रश्न करूँ / ममता कालिया
By: कालिया, ममता.
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन , 2014Description: 78p.ISBN: 9788181436719.Subject(s): Hindi Literature | Hindi FictionDDC classification: 891.431 Summary: रामकथा और काव्य को मैं इतिहास नहीं मानती। मैं इसे एक अनुपम आख्यान मानती हूँ। पहले संस्कृत, बाद में अवधी में इसकी रचना और पुनर्रचना ने यह भलीभाँति किया है कि साहित्य में मानवीकरण की अद्भुत सामर्थ्य है। भारतीय जनमानस पर यह काव्याख्यान अपनी ऐसी अमिट छाप डाल चुका है कि इसकी हर पंक्ति सूक्ति बन गई है। और तो और रामायण और मानस के पाठक दृढ़तापूर्वक यह मानते हैं कि राम और सीता के जीवन का चक्र इसी तरह चला था। फिर भी यह कवि की शक्ति है कि हर प्रसंग अपने आप में स्वयंसिद्ध, स्वप्रमाणित सप्राण और सुसंगत है। इसलिए आज भी विवाह के अवसर पर ‘बियाह’ गाया जाता है तो राम विवाह बावजूद इसके कि विवाहित राम सुखी पुरुष नहीं थे। इसी तरह नवविवाहितों को सराहते हुए कहते हैं कैसी राम सीता की जोड़ी है। राम सीता की जोड़ी दुखी दाम्पत्य का जीता-जागता दस्तावेज रही है। रामकथा और राम-काव्य के पात्र पाठक को लगातार नयी व्याख्या और विवेवना के लिए ललकारते प्रतीत होते हैं। एक चरित्र में अनेक मोड़ आते हैं। दिक्कत तब आती है जब ये पात्र स्वतन्त्र विकास करने लगते हैं क्योंकि सबको राम की मर्यादा के फ्रेम में फिट बैठना होता है। केन्द्रीय चरित्र की स्थापना में होम हुए पात्रों में सर्वोपरी स्थान सीता का है। सीता के प्रति न्याय की चिन्ता न कवि करता है न पति। राम-काव्य का सबसे सशक्त पात्र संघर्ष की जगह सन्ताप की प्रतिमूर्ति नज़र आता है। स्त्री-शिक्षा के प्रचाए-प्रसार के साथ नवीन चेतना का उद्भव हुआ। बीसवीं सदी में समाज में स्त्री की अवस्थिति पर गहन तथा व्यापक विचार-विमर्श का वातावरण बना। समकालीन स्त्री-विमर्श के सरोकारों के तहत सीता का चरित्र, उसके प्रति समाज और उसके जीवन-साथी का आचरण बार्-बार पुनर्विवेचना की माँग कराता है। राम-काव्य केवल हाथ जोड़कर, आँख मूँदकर सुन लेनेवाला आख्यान नहीं है वरन् यह हमसे अवलोकन, पुनरावलोकन और बारम्बार अनुसंधान की अपेक्षा रखता है। सीता के वैवाहिक जीवन की विषमता, वेदना और व्याघात ने मुझे बहुधा सोचने पर बाध्य किया है कि उसे अबला माना जाय अथवा सबला। अबला मान लेने से राम काव्य को ज्यों का त्यों स्वीकार करना सरल हो जाता है। अबला सीता की वही करुण कहानी है कि उसके ‘आँचल’ में है दूध और आँखों में है पानी। हर हाल में वह पति की सहधर्मचारिणी है, पतिव्रता है। आदर्शवादियों के लिए स्त्री के ये सर्वोच्च गुण हैItem type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 891.431 KAL-K (Browse shelf) | Available | 54650 |
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891.4309 SIN-B भाषा साहित्य और संस्कृति शिक्षण/ | 891.4309 SIN-S सख़ुनतकिया/ by | 891.431 AZM-M मेरी आवाज सुनो / | 891.431 KAL-K कितने प्रश्न करूँ / | 891.431 KAL-M मेघदूत/ | 891.431 MAL- मल्लिका का रचना-संसार / | 891.431 NAG विद्यापति के गीत/ |
रामकथा और काव्य को मैं इतिहास नहीं मानती। मैं इसे एक अनुपम आख्यान मानती हूँ। पहले संस्कृत, बाद में अवधी में इसकी रचना और पुनर्रचना ने यह भलीभाँति किया है कि साहित्य में मानवीकरण की अद्भुत सामर्थ्य है। भारतीय जनमानस पर यह काव्याख्यान अपनी ऐसी अमिट छाप डाल चुका है कि इसकी हर पंक्ति सूक्ति बन गई है। और तो और रामायण और मानस के पाठक दृढ़तापूर्वक यह मानते हैं कि राम और सीता के जीवन का चक्र इसी तरह चला था। फिर भी यह कवि की शक्ति है कि हर प्रसंग अपने आप में स्वयंसिद्ध, स्वप्रमाणित सप्राण और सुसंगत है। इसलिए आज भी विवाह के अवसर पर ‘बियाह’ गाया जाता है तो राम विवाह बावजूद इसके कि विवाहित राम सुखी पुरुष नहीं थे। इसी तरह नवविवाहितों को सराहते हुए कहते हैं कैसी राम सीता की जोड़ी है। राम सीता की जोड़ी दुखी दाम्पत्य का जीता-जागता दस्तावेज रही है।
रामकथा और राम-काव्य के पात्र पाठक को लगातार नयी व्याख्या और विवेवना के लिए ललकारते प्रतीत होते हैं। एक चरित्र में अनेक मोड़ आते हैं। दिक्कत तब आती है जब ये पात्र स्वतन्त्र विकास करने लगते हैं क्योंकि सबको राम की मर्यादा के फ्रेम में फिट बैठना होता है। केन्द्रीय चरित्र की स्थापना में होम हुए पात्रों में सर्वोपरी स्थान सीता का है। सीता के प्रति न्याय की चिन्ता न कवि करता है न पति। राम-काव्य का सबसे सशक्त पात्र संघर्ष की जगह सन्ताप की प्रतिमूर्ति नज़र आता है।
स्त्री-शिक्षा के प्रचाए-प्रसार के साथ नवीन चेतना का उद्भव हुआ। बीसवीं सदी में समाज में स्त्री की अवस्थिति पर गहन तथा व्यापक विचार-विमर्श का वातावरण बना। समकालीन स्त्री-विमर्श के सरोकारों के तहत सीता का चरित्र, उसके प्रति समाज और उसके जीवन-साथी का आचरण बार्-बार पुनर्विवेचना की माँग कराता है। राम-काव्य केवल हाथ जोड़कर, आँख मूँदकर सुन लेनेवाला आख्यान नहीं है वरन् यह हमसे अवलोकन, पुनरावलोकन और बारम्बार अनुसंधान की अपेक्षा रखता है।
सीता के वैवाहिक जीवन की विषमता, वेदना और व्याघात ने मुझे बहुधा सोचने पर बाध्य किया है कि उसे अबला माना जाय अथवा सबला। अबला मान लेने से राम काव्य को ज्यों का त्यों स्वीकार करना सरल हो जाता है। अबला सीता की वही करुण कहानी है कि उसके ‘आँचल’ में है दूध और आँखों में है पानी। हर हाल में वह पति की सहधर्मचारिणी है, पतिव्रता है। आदर्शवादियों के लिए स्त्री के ये सर्वोच्च गुण है
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