पातञ्जल योग विमर्श : प्रकाशन वाचस्पति मिश्र और विज्ञानभिक्षु के परिप्रेक्ष्य में / विजयपाल शास्त्री
By: शास्त्री, विजयपाल Shastri, Vijay Pal विजयपाल शास्त्री [लेखक , Author.].
Publisher: दिल्ली: सत्यम पब्लिशिंग हाउस, 1991Description: 277p.ISBN: 9789391993580.Other title: Patanjali yoga vimarsh by Vijay Pal Shastri.Subject(s): योग -- दर्शन -- योग सूत्र और पतंजलि | भारतीय दर्शन -- योग दर्शन -- सांख्य और वेदांत पर प्रभाव | ध्यान और साधना -- आध्यात्मिक अभ्यास -- आत्मानुभूति और मुक्ति | योग साहित्य -- व्याख्या और आलोचना -- योग सूत्र पर टीका | योग का इतिहास और परंपरा -- भारतीय संत और दार्शनिक -- पतंजलि और योग दर्शनDDC classification: 181.452 Summary: योग दर्शन के क्षेत्र में अनेक विवरण ग्रन्थों और समीक्षा साहित्य के होते हुए भी प्रस्तुत ग्रन्थ पातञ्जल योग विमर्श का विशिष्ट महत्त्व है। पतंजलि प्रणीत योग सूत्र के व्यासभाष्य के ऊपर वाचस्पति मिश्रकृत योगतत्त्व वैशारदी और विज्ञानभिक्षुकृत योगवार्तिक टीका को लक्ष्य बनाकर प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी है। व्यासदेव कृत भाष्य के बिना पतञ्जलि के हृदय को समझना असंभव ही था। व्यासभाष्य के कतिपय मन्तव्यों को समझना भी पाठकों के लिए सरल नहीं था। उसको समझने में आचार्य वाचस्पति मिश्र और विज्ञानभिक्षु की टीकाओं ने महनीय योगदान किया। इन दोनों टीकाओं की व्याख्याओं में भी कहीं-कहीं मतभेद प्राप्त होता है। उन्हीं मतों की समीक्षा करनें में प्रस्तुत ग्रन्थ कृतकार्य हुआ है। योगदर्शन के शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|
![]() |
NASSDOC Library | 181.452 SHA-P (Browse shelf) | Available | 54580 |
योग दर्शन के क्षेत्र में अनेक विवरण ग्रन्थों और समीक्षा साहित्य के होते हुए भी प्रस्तुत ग्रन्थ पातञ्जल योग विमर्श का विशिष्ट महत्त्व है। पतंजलि प्रणीत योग सूत्र के व्यासभाष्य के ऊपर वाचस्पति मिश्रकृत योगतत्त्व वैशारदी और विज्ञानभिक्षुकृत योगवार्तिक टीका को लक्ष्य बनाकर प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी है। व्यासदेव कृत भाष्य के बिना पतञ्जलि के हृदय को समझना असंभव ही था। व्यासभाष्य के कतिपय मन्तव्यों को समझना भी पाठकों के लिए सरल नहीं था। उसको समझने में आचार्य वाचस्पति मिश्र और विज्ञानभिक्षु की टीकाओं ने महनीय योगदान किया। इन दोनों टीकाओं की व्याख्याओं में भी कहीं-कहीं मतभेद प्राप्त होता है। उन्हीं मतों की समीक्षा करनें में प्रस्तुत ग्रन्थ कृतकार्य हुआ है। योगदर्शन के शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।
Hindi
There are no comments for this item.