जमनिया का बाबा/
Jamaniya Ka Baba
नागार्जुन
- नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2020.
- 140p.
मैंने बहुत सोच-समझ कर जमनिया को अपना अड्डा बनाया। पहली बात तो यह थी कि मुझे पिछड़ी जातियों से विशेष प्रेम है। साधुओं का जितना आदर वे करती हैं, उतना और कोई नहीं करता। ऊँची जातियों के बड़े लोग मूर्ख साधुओं का मखौल उड़ाते हैं। भेस और रंग के पीछे वे ज्ञान की परख करते हैं। पक्की भाषा में बड़ी-बड़ी बातें करने वाला साधु ही उन्हें प्रभावित कर सकता है। हमारे जैसों के लिए अनपढ़ भगत ही काम का साबित होता है। जमनिया के इर्द-गिर्द लाखों की तादाद में ग़रीब और अनपढ़ लोग फैले हैं। दूसरा लाभ था नेपाल का नज़दीक होना। शासन की तीसरी आँख से बचने के लिए न जाने कितनी बार नेपाल भाग-भाग कर गया हूँ।