000 | 04111nam a2200205 4500 | ||
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999 |
_c38420 _d38420 |
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020 | _a9788126726714 | ||
041 | _aHindi | ||
082 |
_a320.954090511 _bDHA- |
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245 |
_aधर्म सत्ता और हिंसा / _cसंपादक राम पुनियनी |
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246 | _aDharm, Satta aur Hinsa | ||
260 |
_aनई दिल्ली : _bराजकमल प्रकाशन, _c2016. |
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300 | _a288p. | ||
504 | _aIncludes bibliographical references and index. | ||
520 | _aबीते वर्षों के दौरान साम्प्रदायिकता का उभार भारतीय राजनीति में एक बड़े दावेदार के रूप में हुआ है। सो भी इतने जोर-शोर से कि हमारे संवैधानिक ढाँचे के लिए ख़तरा बनता दिखाई दे रहा है। अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श में भी उत्तरोत्तर धार्मिक शब्दावली का प्रयोग ज्यादा दिखने लगा है। विश्व के भी मानवाधिकार आन्दोलन इसको एक बड़ी चुनौती के रूप में देख रहे हैं। इस पुस्तक में शामिल सत्रह मौलिक आलेखों की पृष्ठभूमि यही है जिसमें अमेरिका पर सितम्बर 11 का हमला, अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर अमेरिकी आक्रमण, दुनिया-भर में इस्लाम का शैतानीकरण और भारत के मुम्बई व गुजरात के दंगों को ख़ास तौर पर रेखांकित किया गया है। ये आलेख बताते हैं कि भीड़ को धर्म के नाम पर भड़काकर वंचित समूहों के भीतर किसी भी विद्रोह की सम्भावना को कैसे असम्भव कर दिया जाता है और धर्म-आधारित राजनीति किस तरह आज उदारीकरण, भूमंडलीकरण और निजीकरण के साथ गठजोड़ करके चल रही है। यह पुस्तक मुस्लिम पिछड़ेपन के मिथक, हिन्दुत्व की विभाजनकारी राजनीति को आप्रवासियों की आर्थिक मदद आदि मुद्दों पर भी तथ्याधारित विचार करती है और अब आदिवासी, दलित और स्त्रियों के साथ अन्य अल्पसंख्यक समूह कैसे उसके निशाने पर आ रहे हैं यह भी बताती है। हिन्दुत्व पर लगभग हर कोण से विस्तृत परिदृश्य में प्रश्नवाचक समीक्षा करनेवाली यह पुस्तक राजनीति, समाजविज्ञान, इतिहास और धर्म आदि सभी क्षेत्रों के अध्येताओं के लिए पठनीय है। | ||
546 | _aHindi. | ||
650 |
_aधर्म और राजनीति _vराजनीतिक हिंसा _xधार्मिक पक्ष _zभारत |
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650 |
_aReligion and politics _vPolitical violence _xReligion and state _zIndia |
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700 |
_aपुनियनी, राम _eसंपादक. |
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942 |
_2ddc _cBK |