000 | 04242nam a22002057a 4500 | ||
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999 |
_c38968 _d38968 |
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020 | _a9788131602720 | ||
082 |
_a303.48454 _bSHA-B |
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100 |
_aशाह,घनश्याम _qGhanshyam Shah |
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245 |
_aभारत में सामाजिक आन्दोलन : _bसम्बंधित साहित्य की एक समीक्षा / _cघनश्याम शाह |
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246 | _aBharat Me Samajik Andolan: Sambandhit Sahity Ki Ek Sameksha | ||
260 |
_aजयपुर: _b रावत पुब्लिकेशन्स , _c2023. |
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300 | _axi,258p. | ||
504 | _aInclude Bibliography. | ||
520 | _aसामाजिक आन्दोलन प्रमुख रूप से राजनीतिक एवं/अथवा सामाजिक परिवर्तन के लिए असंस्थागत सामूहिक राजनीतिक प्रयास का ही एक रूप है। भारत में पिछली कुछ शताब्दियों में इस प्रकार के अनेक आन्दोलन हुए हैं परन्तु विद्वानों ने इनका गहराई से अध्ययन हाल ही में प्रारम्भ किया है। पूर्णतः संशोधित तथा अद्यतन प्रस्तुत पुस्तक में भारत में सामाजिक आन्दोलनों को नौ श्रेणियों, यथा किसान, जनजाति, दलित, पिछड़ी जाति, महिला, छात्र, मध्यम वर्ग, कामकाजी वर्ग तथा मानव अधिकार व पर्यावरणीय समूहों, में विभक्त किया गया है। ये श्रेणियां प्रतिभागियों और मुद्दों पर आधरित हैं। पुस्तक के प्रत्येक अध्याय को प्रमुख सामाजिक आन्दोलनों के प्रमुख घटकों, यथा, मुद्दों, विचारधारा, संगठन एवं नेतृत्व के आधार पर विभाजित किया गया है। भारत में 1857 से लेकर अब तक हुए सामाजिक आन्दोलनों से सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा करते हुए लेखक ने विभिन्न आन्दोलनों की प्रमुख प्रवृत्तियों के विश्लेषण के दौरान विभिन्न विद्वानों द्वारा उठाए गए सैद्धान्तिक मुद्दों पर भी अपने विचार व्यक्त किए हैं। सारांक्ष रूप में, उन्होनें भविष्यगत शोध के क्षेत्रों को भी इंगित किया है। आध्ुनिक भारत में सामाजिक आन्दोलनों का एक तार्किक वर्गीकरण प्रस्तावित करते हुए लेखक ने यह आशा व्यक्त की है कि प्रस्तुत पुस्तक सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के साथ-साथ राजनीतिक विज्ञान शास्त्रियों, इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों के लिए अत्यन्त अमूल्य कृति सिद्ध होगी। | ||
546 | _aHindi. | ||
650 | _aसमाज शास्त्र | ||
650 |
_aसामाजिक विज्ञान _xसामान्य |
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700 |
_a हरिकृष्ण रावत _eअनुवादक |
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942 |
_2ddc _cBK |