000 | 04534nam a2200169 4500 | ||
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999 |
_c39358 _d39358 |
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020 | _a9788183616515 | ||
082 |
_a892.47 _bSHU-O |
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100 | _a शुक्ल, श्रीप्रकाश | ||
245 |
_aओरहान और अन्य कविताएँ _c/ श्रीप्रकाश शुक्ल |
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260 |
_aNew Delhi: _bRadhakrishna Prakashan, _c2014. |
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300 | _a160p. | ||
520 | _a‘आँधी में टूटकर गिरा हुआ मकान/तूफ़ान में सूखकर रेत हुई नदी/थककर गिरा हुआ आदमी/ज़्यादे भरोसे का होता है/अपनी-अपनी सम्भावनाओं में/समर्पित सफलता से/ज़्यादा मूल्यवान होती है/तनी हुई विफलता।’ श्रीप्रकाश शुक्ल के कविता-संग्रह ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ में शामिल कविता ‘तनी हुई विफलता’ की ये पंक्तियाँ रचनाकार के पक्ष को स्पष्ट कर देती हैं। प्रत्येक सजग और समर्थ रचनाकार बार-बार निजी और सामाजिक अनुभवों को चेतना की कसौटी पर कसता है। इसे ‘पुन:पाठ’ कहें या ‘अर्थान्तर’ सच्चाई यही है कि हर शब्द एक अनुभव माँगता है और हर अनुभव एक जीवन। इस आन्तरिक प्रक्रिया से गुज़रकर जो कवि समय को व्यक्त कर रहे हैं, उनमें श्रीप्रकाश शुक्ल महत्त्वपूर्ण हैं। प्रस्तुत संग्रह को पढ़ते हुए यह लगना अनायास नहीं कि ‘बनारस’ इसकी केन्द्रीयता है। बनारस के अनेक प्रसंग, स्थान और स्वभाव कविताओं में निहित व निनादित हैं।...और एक ‘सनातन नगर’ के बहाने कवि ने आधुनिकता के श्वेत-श्याम आवासों को टटोला है। श्रीप्रकाश शुक्ल में यह कहने का साहस व सलीका भी है कि, ‘सब कुछ बहुवचन में नहीं सोचा जा सकता।’ अपने तरीक़े से सोचते हुए उन्होंने ‘ओरहन’, ‘एक कवि की तलाश में’, ‘हमारे समय का एक शोकगीत’, ‘एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती है’ व ‘छठ की औरतें’ जैसी कई उदाहरणीय कविताएँ रची हैं। इस संग्रह में ‘स्त्री’ को लेकर कुछ बेहद ख़ास कविताएँ हैं। बिना शब्दों का डमरू बजाए। निजी देसी मुहावरे में श्रीप्रकाश ‘लरिकोर’ जैसी अनूठी कविता लिखते हैं। भाषा के स्वीकृत विन्यास को सतर्क चुनौती देते हुए रची गई ये कविताएँ हमें संवेदनाओं के एक सघन संसार में ले जाती हैं, जहाँ अपेक्षित भाषाई मुखरता के साथ एक आत्मसंवादी स्वर भी है जिसमें प्रकृति के साहचर्य से दूर जाते समाज की चालाकियों का पर्दाफ़ाश भी है। | ||
546 | _aHindi | ||
650 | _aPoetry | ||
650 | _aHindi Poetry | ||
942 |
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