000 04291nam a2200241 4500
999 _c39360
_d39360
020 _a9788183614177
041 _ahin-
082 _a891.4435
_bSAR-C
100 _aचट्टोपाध्याय, शरतचंद्र
_eलेखक.
245 _aचरित्रहीन /
_cद्वारा शरतचंद्र चट्टोपाध्याय.
260 _aदिल्ली:
_bराधाकृष्ण प्रकाशन,
_c2019.
300 _a408p.
504 _aInclude bibliography and index.
520 _aनारी का शोषण, समर्पण और भाव-जगत तथा पुरुष समाज में उसका चारित्रिक मूल्यांकन - इससे उभरने वाला अन्तर्विरोध ही इस उपन्यास का केन्द्रबिन्दु है। शरतचन्द्र ने नारी मन के साथ-साथ इस उपन्यास में मानव मन की सूक्ष्म प्रवृत्तियों का भी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, साथ ही यह उपन्यास नारी की परम्परावादी छवि को तोड़ने का भी सफल प्रयास करता है। उपन्यास सवाल उठाता है कि देवी की तरह पूजनीय और दासी की तरह पितृसत्ता के अधीन घुट-घुटकर जीने वाली स्त्री के साथ यह अन्तर्विरोध और विडम्बना क्यों है? उपन्यास ‘चरित्र’ की अवधारणा को भी पुनःपरिभाषित करता है। चरित्र को स्त्री के साथ ही अनिवार्य गुण की तरह क्यों जोड़ा जाता है? वह कैसे चरित्रहीन हो जाती है? उसे चरित्रहीन कहने वाला कौन होता है? यह प्रसिद्ध उपन्यास बार-बार हमें इन सवालों के सामने ला खड़ा करता है। नारी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में दक्ष शरत् बाबू इस उपन्यास में उस परिवर्तन को भी रेखांकित करते हैं जो समाज में आया है इसलिए दशकों पहले लिखा गया यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उल्लेखनीय है कि इस उपन्यास का अनुवाद नए सिरे से किया गया है, उन तमाम अंशों को साथ रखते हुए जो अभी तक उपलब्ध अनुवादों में छोड़ दिए गए थे। एक सम्पूर्ण उत्कृष्ट उपन्यास।.
546 _aHindi.
650 _aशरतचंद्र चट्टोपाध्याय
_vकृतियाँ
_xबंगाली साहित्य
650 _aबंगाली उपन्यास
_vकथा साहित्य
_xसामाजिक और नैतिक विषय
650 _aनारीवाद
_vसाहित्य
_xस्त्री विमर्श और सामाजिक संघर्ष
650 _aसमाज और नैतिकता
_vउपन्यास
_xभारतीय साहित्य
650 _aसाहित्यिक विश्लेषण
_vअध्ययन
_xशरतचंद्र के उपन्यास
650 _aस्त्री और समाज
_vसाहित्य
_xसामाजिक परिवेश और संघर्ष
942 _2ddc
_cBK