000 04039nam a22002417a 4500
999 _c39371
_d39371
020 _a9788126703845
041 _ahin-
082 _a891.433
_bPUS-J
100 _aपुष्पा, मैत्रेयी
_eलेखक
245 _aझूला नट /
_cमैत्रेयी पुष्पा
246 _aJhoola Nat by Maitreyi Pushpa
260 _aनई दिल्ली:
_bराजकमल प्रकाशन,
_c2018.
300 _a162p.
504 _aIncluding Bibliography and Index.
520 _aगाँव की साधारण–सी औरत है शीलोµन बहुत सुंदर और न बहुत सुघड़ लगभग अनपढ़µन उसने मनोविज्ञान पढ़ा है, न समाजशास्त्र जानती है । राजनीति और स्त्री–विमर्श की भाषा का भी उसे पता नहीं है । पति उसकी छाया से भागता है । मगर तिरस्कार, अपमान और उपेक्षा की यह मार न शीलो को कुएँ–बावड़ी की ओर धकेलती है, और न आग लगाकर छुटकारा पाने की ओर । वशीकरण के सारे तीर–तरकश टूट जाने के बाद उसके पास रह जाता है जीने का नि:शब्द संकल्प और श्रम की ताकत एक अडिग धैर्य और स्त्री होने की जिजीविषा उसे लगता है कि उसके हाथ की छठी अंगुली ही उसका भाग्य लिख रही है और उसे ही बदलना होगा । झूला नट की शीलो हिंदी उपन्यास के कुछ न भूले जा सकने वाले चरित्रों में एक है । बेहद आत्मीय, पारिवारिक सहजता के साथ मैत्रेयी ने इस जटिल कहानी की नायिका शीलो और उसकी ‘स्त्री–शक्ति’ को फोकस किया है पता नहीं झूला नट शीलो की कहानी है या बालकिशन की . हाँ, अंत तक, प्रकृति और पुरुष की यह ‘लीला’ एक अप्रत्याशित उदात्त अर्थ में जरूर उद्भासित होने लगती है । निश्चय ही झूला नट हिंदी का एक विशिष्ट लघु–उपन्यास है|
546 _aHindi.
650 _aहिंदी उपन्यास
_vसामाजिक यथार्थ
_xआधुनिक हिंदी साहित्य
650 _aमैत्रेयी पुष्पा – साहित्यिक योगदान
_vआलोचना और व्याख्या
_xहिंदी कथा साहित्य
650 _aभारतीय समाज – ग्रामीण जीवन
_vसाहित्य में सामाजिक चित्रण
_xसमाज और वर्ग संघर्ष
650 _aहिंदी साहित्य में नारीवाद
_vसाहित्य में स्त्री दृष्टि
_xस्त्री विमर्श और अधिकार
650 _aहिंदी कथा साहित्य – कथानक और शैली
_vसाहित्यिक विशेषताएँ
_xकथा प्रवाह और चरित्र चित्रण
942 _2ddc
_cBK