000 | 04053nam a2200241 4500 | ||
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999 |
_c39403 _d39403 |
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020 | _a9789390971930 | ||
041 | _ahin- | ||
082 |
_a891.431 _bMAL- |
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245 |
_aमल्लिका का रचना-संसार / _cसंकलन-सम्पादन द्वारा वसुधा डालमिया |
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246 | _aMallika Ka Rachna Sansar by Vasudha Dalmia | ||
260 |
_aदिल्ली: _bराजकमल प्रकाशन, _c2022. |
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300 | _a158p. | ||
504 | _aIncludes Bibliography and Index. | ||
520 | _aऔरतों के प्रति जब कभी पुरानी धारणा की मुठभेड़ आधुनिकता से होती है, तो भारतीय मन मनुष्य और समाज को पुरुषार्थ के उजाले में देखने-दिखाने के लिए मुड़ जाता है। पर हमारी परम्परा में पुरुषार्थ की साधना वही कर सकता है जो स्वतंत्र हो। और स्त्री की बाबत स्मृतियों की राय यही है कि वह बुद्धि और विवेक से रहित है। इसलिए वह स्वतंत्र हुई तो स्वैराचारिणी बनी। बेहतर हो वह पराश्रयी बन कर रहे। प्रसिद्ध साहित्यकार भारतेन्दु की रक्षिता मल्लिका का निजी जीवन और उनका यह दुर्लभ कृतित्व इस धारणा को उसी के धरातल में जाकर प्रखर चुनौती देता है। काशी के एक सम्पन्न परिवार के कुलदीपक की रक्षिता यह बांग्ला मूल की महिला 19वीं सदी के समाज में सामाजिक स्वीकार से वंचित रहीं। फिर भी उनकी नैसर्गिक प्रतिभा और कुछ हद तक भारतेन्दु के साथ रहते हुए उस प्रतिभा के निरन्तर परिष्कार से वह अपने समय के समाज में स्त्री जाति की असली दशा, विशेषकर युवा विधवाओं और किसी भी वजह से समाज की डार से बिछड़ गई औरतों की दुनिया पर निडर रचनात्मक नज़र डाल सकीं। यह आज भी विरल है, तब के युग में तो वह दुर्लभ ही था। —मृणाल पाण्डे | ||
546 | _aHindi. | ||
650 |
_aमल्लिका – साहित्यिक योगदान _vआलोचना और व्याख्या _xहिंदी साहित्य |
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650 |
_aहिंदी कविता और गद्य _vसाहित्यिक अध्ययन _xसमकालीन हिंदी साहित्य |
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650 |
_aनारीवादी साहित्य _vमहिला लेखन _xसाहित्यिक विश्लेषण |
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650 |
_aभारतीय साहित्य का इतिहास _vहिंदी _xआधुनिक काल |
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650 |
_aसाहित्यिक आलोचना और समीक्षा _vअध्ययन और शोध _xहिंदी साहित्य में स्त्री दृष्टि |
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700 |
_aडालमिया, वसुधा _eसंकलन-सम्पादन |
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942 |
_2ddc _cBK |