000 | 02691nam a22001817a 4500 | ||
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999 |
_c39472 _d39472 |
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020 | _a9788181439758 | ||
082 |
_a891.433 _bNAG-B |
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100 | _aनागार्जुन | ||
245 |
_aबलचनमा/ _cनागार्जुन |
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246 | _aBalchnama | ||
260 |
_a नई दिल्ली: _b वाणी प्रकाशन, _c2019. |
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300 | _a172p. | ||
520 | _a'बलचनमा' के पिता का यही कसूर था कि वह जमींदार के बगीचे से एक कच्चा आम तोड़कर खा गया। और इस एक आम के लिए उसे अपनी जान गंवानी पड़ गई। गरीब जीवन की त्रासदी देखिए कि पिता की दुखद मृत्यु के दर्द से आँसू अभी सूखे भी नहीं थे कि उसी कसाई जमींदार की भैंस चराने के लिए बलचनमा को बाध्य होना पड़ा। पेट की आग के आगे पिता की मृत्यु का दर्द जैसे बिला गया! ...उस निर्मम जमींदार ने दया खाकर उसे नौकरी पर नहीं रखा था। उसने तो बलचनमा की माँ की पुश्तैनी जमीन के छोटे टुकड़े को गटक जाने के लिए गिद्ध-नजर रखी थी। ...अब बलचनमा बड़ा हो गया था... गाँव छोड़कर शहर भाग आया था... बेशक उसे 'अक्षर' का ज्ञान नहीं था, लेकिन 'सुराज', 'इन्किलाब' जैसे शब्दों से उसके अन्दर चेतना व्याप्त हो गई थी। और फिर शोषितों को एकजुट करने का प्रयास शुरू होता हैशोषकों से संघर्ष करने के लिए। ‘बलचनमा’ प्रख्यात कवि और कथाकार नागार्जुन की एक सशक्त कथा-कृति और हिन्दी का पहला आंचलिक उपन्यास। | ||
650 |
_aNovel _xHindi Literature |
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650 |
_aUpanyas _vHindi Sahitya |
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650 |
_aउपन्यास _vहिन्दी साहित्य |
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942 |
_2ddc _cBK |