000 03587nam a22002297a 4500
999 _c39645
_d39645
020 _a9789391993580
041 _ahin-
082 _a181.452
_bSHA-P
100 _aशास्त्री, विजयपाल
_aShastri, Vijay Pal
_eलेखक
_eAuthor.
_qविजयपाल शास्त्री
245 _aपातञ्जल योग विमर्श :
_bप्रकाशन वाचस्पति मिश्र और विज्ञानभिक्षु के परिप्रेक्ष्य में /
_cविजयपाल शास्त्री
246 _aPatanjali yoga vimarsh by Vijay Pal Shastri
260 _aदिल्ली:
_bसत्यम पब्लिशिंग हाउस,
_c1991.
300 _a277p.
520 _aयोग दर्शन के क्षेत्र में अनेक विवरण ग्रन्थों और समीक्षा साहित्य के होते हुए भी प्रस्तुत ग्रन्थ पातञ्जल योग विमर्श का विशिष्ट महत्त्व है। पतंजलि प्रणीत योग सूत्र के व्यासभाष्य के ऊपर वाचस्पति मिश्रकृत योगतत्त्व वैशारदी और विज्ञानभिक्षुकृत योगवार्तिक टीका को लक्ष्य बनाकर प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी है। व्यासदेव कृत भाष्य के बिना पतञ्जलि के हृदय को समझना असंभव ही था। व्यासभाष्य के कतिपय मन्तव्यों को समझना भी पाठकों के लिए सरल नहीं था। उसको समझने में आचार्य वाचस्पति मिश्र और विज्ञानभिक्षु की टीकाओं ने महनीय योगदान किया। इन दोनों टीकाओं की व्याख्याओं में भी कहीं-कहीं मतभेद प्राप्त होता है। उन्हीं मतों की समीक्षा करनें में प्रस्तुत ग्रन्थ कृतकार्य हुआ है। योगदर्शन के शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास है।
546 _aHindi
650 _aयोग
_vदर्शन
_xयोग सूत्र और पतंजलि
650 _aभारतीय दर्शन
_vयोग दर्शन
_xसांख्य और वेदांत पर प्रभाव
650 _aध्यान और साधना
_vआध्यात्मिक अभ्यास
_xआत्मानुभूति और मुक्ति
650 _aयोग साहित्य
_vव्याख्या और आलोचना
_xयोग सूत्र पर टीका
650 _aयोग का इतिहास और परंपरा
_vभारतीय संत और दार्शनिक
_xपतंजलि और योग दर्शन
942 _2ddc
_cBK