विकास पर्यावरण और आदिवासी समाज / फरहद मालिक और रुपेश कुमार द्वारा संपादित
Contributor(s): मलिक, फरहद [Farhad Malik संपादक ] | कुमार, रूपेश [Rupesh Kumar संपादक ].
Publisher: न्यू दिल्ली : के. के. पब्लिकेशन, 2022Description: 86p.ISBN: 9788178443607.Other title: Vikas paryavaran aur adivashi samaj.Subject(s): पर्यावरणीय परिवर्तन और आदिवासी समुदायों का प्रभाव | पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी समाज: संघर्ष और संगठन | संसाधनों का उपयोग, बांटवारा और आदिवासी समाज के विकासDDC classification: 307.772 Summary: वैश्विक स्तर पर विकास, पर्यावरण और आदिवासी समाज की चिंता एक प्रमुख मुद्दा है। यह विमर्श अब केवल बौद्धिक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि सामान्य जन के बीच भी इसकी चर्चा होने लगी है। लगातार घटते वन क्षेत्र और नष्ट होती आदिवासी सभ्यता एवं संस्कृति को बचाने के लिए तरह-तरह के तर्क प्रस्तुत किये जा रहे हैं, लेकिन कोई प्रभावी उपाय अब तक नही अपनाया जा सका। विकास के नाम पर पूँजी और सत्ता के गठजोड़ ने प्रकृति पर विजय पाने की कामना को इस कदर बढ़ा दिया है कि मानव सह-जीवन को भूलता जा रहा है। जनजातियाँ प्रकृति एवं वन्य जीवों के महत्त्व को समझती हैं और उसके साथ सह-जीवन यापन कर रही हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश सत्ता उसे ही इनका दुश्मन मान बैठी है। जिसके कारण जनजातियों के मानवाधिकारों की परवाह किये बिना कईओं को विस्थापित किया जा चुका है तो कई को किया जा रहा है। यह सब क्यों और कैसे संभव हो रहा है? पर्यावरण एवं आदिवासी सभ्यता और संस्कृति को कैसे बचाया जा सकता है? यह पुस्तक इसके कारणों की खोज करने के उद्देश्य से सम्पादित की गई है, जिसमें अकादमिक व प्रशासनिक विभाग के साथ पर्यावरण सुरक्षा और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के लेखों को शामिल किया गया है। सभी लेखकों के अपने स्वतंत्र विचार है, इससे सहमति असहमति हो सकती है, लेकिन इस विषय पर समझ विकसित करने के उद्देश्य से सभी लेख महत्वपूर्ण हैं। उम्मी है यह पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी साबित होगी।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
---|---|---|---|---|---|
![]() |
NASSDOC Library | 307.772 VIK- (Browse shelf) | Available | 53285 |
Browsing NASSDOC Library Shelves Close shelf browser
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
![]() |
||
307.772 RAT-T Tribals and watershed development | 307.772 SIM-P Profile of tikhak tangsa tribe of Arunachal Pradesh | 307.772 THO-; Progress and its impact on the Nagas: a clash of worldviews | 307.772 VIK- विकास पर्यावरण और आदिवासी समाज / | 307.772071 JAN-J Janjatiyon mein shiksha ki pravrattiyan: Rajasthan ki janjati upyojana kshetra ka ek adhyayan | 307.772082 BAY-; Janjatiya vikas: dakshini Rajasthan ke sandharbh mein | 307.772082 DWI-J Janjatiya shetra aur niyojit vikas |
ग्रंथसूची संदर्भ शामिल हैं |
वैश्विक स्तर पर विकास, पर्यावरण और आदिवासी समाज की चिंता एक प्रमुख मुद्दा है। यह विमर्श अब केवल बौद्धिक समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि सामान्य जन के बीच भी इसकी चर्चा होने लगी है। लगातार घटते वन क्षेत्र और नष्ट होती आदिवासी सभ्यता एवं संस्कृति को बचाने के लिए तरह-तरह के तर्क प्रस्तुत किये जा रहे हैं, लेकिन कोई प्रभावी उपाय अब तक नही अपनाया जा सका। विकास के नाम पर पूँजी और सत्ता के गठजोड़ ने प्रकृति पर विजय पाने की कामना को इस कदर बढ़ा दिया है कि मानव सह-जीवन को भूलता जा रहा है।
जनजातियाँ प्रकृति एवं वन्य जीवों के महत्त्व को समझती हैं और उसके साथ सह-जीवन यापन कर रही हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश सत्ता उसे ही इनका दुश्मन मान बैठी है। जिसके कारण जनजातियों के मानवाधिकारों की परवाह किये बिना कईओं को विस्थापित किया जा चुका है तो कई को किया जा रहा है। यह सब क्यों और कैसे संभव हो रहा है? पर्यावरण एवं आदिवासी सभ्यता और संस्कृति को कैसे बचाया जा सकता है? यह पुस्तक इसके कारणों की खोज करने के उद्देश्य से सम्पादित की गई है, जिसमें अकादमिक व प्रशासनिक विभाग के साथ पर्यावरण सुरक्षा और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के लेखों को शामिल किया गया है। सभी लेखकों के अपने स्वतंत्र विचार है, इससे सहमति असहमति हो सकती है, लेकिन इस विषय पर समझ विकसित करने के उद्देश्य से सभी लेख महत्वपूर्ण हैं। उम्मी है यह पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी साबित होगी।
हिंदी.
There are no comments for this item.