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पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन / रघुवंश

By: रघुवंश [Raghuvansh] [लेखक [author]].
Publisher: प्रयागराज : लोकभारती प्रकाशन, 2004Description: 664p.Other title: Pashchimi Bhautik Sanskriti ka Utthan aur Patan.Subject(s): सांस्कृतिक नृविज्ञान | सामाजिक परिवर्तन | पाश्चात्य सभ्यता | दार्शनिक दृष्टिकोण | गांधीवादी दर्शन | लोहिया, राम मनोहर | जयप्रकाश नारायणDDC classification: 303.44 Summary: डॉ. रघुवंश प्रारंभ ही से ऐसी संस्कृति और ऐसे समाज के बारे में सोचते रहे हैं जिसमें सभी मनुष्य शांति और सुख के साथ रह सकें। इससे सम्बन्धित अनेक प्रश्नों, उत्तरों और प्रत्युत्तरों पर वे ऐतिहासिक और तार्किक दृष्टि से ही नहीं मूल्य-परक दृष्टि से भी निरंतर विचार करते रहे हैं। सारा वही चिन्तन सूत्रित होकर इस पुस्तक में विन्यस्त है। पश्चिमी सभ्यता की तर्क केन्द्रित भौतिक सभ्यता की ओर उन्मुखता तथा पूर्वी संस्कृति की • आत्मकेन्द्रीयता दोनों की अतियों और परिणामों पर उन्होंने अत्यंत सजगता के साथ इस पुस्तक में विचार किया है। इसमें अनेक विचारकों के मतों को उन्होंने अपने चिन्तनक्रम में नये सिरे से परिभाषित किया है। गांधी, लोहिया और जयप्रकाश नारायण के विचारों और कार्यों से उन्हें भौतिक सभ्यता के बरक्स एक विकल्प सूझता दिखता है, परंतु यह पुस्तक केवल इन तीन विभूतियों के निष्कर्षो का समन्वय नहीं है। पुस्तक में उन्होंने चर्चा और प्रसंगों के क्रम में इनके विचारों का भी विवेचन किया है और इनके बीच से एक विकल्प प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। वर्तमान अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति के परिणामों से वे न केवल परिचित हैं, वे इनका विकल्प भी सुझाते हैं। मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में मानव सभ्यताओं का मूल्यांकन करते हुए रघुवंश जी नकारात्मक नहीं, सकारात्मक, संभावनायुक्त लक्ष्यों का संकेत करते हैं। मनुष्य की शक्तियों पर अपरिमित विश्वास इस पुस्तक में उन्हें अत्यंत गम्भीर रूप से सार्थक विकल्प को तलाश की ओर अभिमुख किये रहा। यह पुस्तक एक लेखक के जीवन भर के अनुभवों, तर्कों और विचारों का प्रतिफल मात्र नहीं है। यह आज के मनुष्य के अनेक जटिल प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयत्न भी है। इसमें विवेकपूर्ण विश्लेषण ही नहीं, गांधी, लोहिया और जयप्रकाश की चिन्ताओं का हल खोजने का अभूतपूर्व प्रयत्न है। पुस्तक पश्चिमी सभ्यता की उपलब्धियों को रेखांकित करती है, परन्तु इसके बावजूद मनुष्यता के क्रमिक क्षरणा के प्रति भी सजग करती है। मनुष्य को कैसे बदला जाय कि वह प्रश्नों और संकटों का स्वयं उत्तर देता चले इस सार्थक विकल्प के लिए यह पुस्तक उन सबके लिए पठनीय है, जो इन प्रश्नों से विचलित होते हैं।
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Includes bibliographical references and index.

डॉ. रघुवंश प्रारंभ ही से ऐसी संस्कृति और ऐसे समाज के बारे में सोचते रहे हैं जिसमें सभी मनुष्य शांति और सुख के साथ रह सकें। इससे सम्बन्धित अनेक प्रश्नों, उत्तरों और प्रत्युत्तरों पर वे ऐतिहासिक और तार्किक दृष्टि से ही नहीं मूल्य-परक दृष्टि से भी निरंतर विचार करते रहे हैं। सारा वही चिन्तन सूत्रित होकर इस पुस्तक में विन्यस्त है। पश्चिमी सभ्यता की तर्क केन्द्रित भौतिक सभ्यता की ओर उन्मुखता तथा पूर्वी संस्कृति की • आत्मकेन्द्रीयता दोनों की अतियों और परिणामों पर उन्होंने अत्यंत सजगता के साथ इस पुस्तक में विचार किया है। इसमें अनेक विचारकों के मतों को उन्होंने अपने चिन्तनक्रम में नये सिरे से परिभाषित किया है। गांधी, लोहिया और जयप्रकाश नारायण के विचारों और कार्यों से उन्हें भौतिक सभ्यता के बरक्स एक विकल्प सूझता दिखता है, परंतु यह पुस्तक केवल इन तीन विभूतियों के निष्कर्षो का समन्वय नहीं है। पुस्तक में उन्होंने चर्चा और प्रसंगों के क्रम में इनके विचारों का भी विवेचन किया है और इनके बीच से एक विकल्प प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। वर्तमान अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्थिति के परिणामों से वे न केवल परिचित हैं, वे इनका विकल्प भी सुझाते हैं। मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में मानव सभ्यताओं का मूल्यांकन करते हुए रघुवंश जी नकारात्मक नहीं, सकारात्मक, संभावनायुक्त लक्ष्यों का संकेत करते हैं। मनुष्य की शक्तियों पर अपरिमित विश्वास इस पुस्तक में उन्हें अत्यंत गम्भीर रूप से सार्थक विकल्प को तलाश की ओर अभिमुख किये रहा।
यह पुस्तक एक लेखक के जीवन भर के अनुभवों, तर्कों और विचारों का प्रतिफल मात्र नहीं है। यह आज के मनुष्य के अनेक जटिल प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयत्न भी है। इसमें विवेकपूर्ण विश्लेषण ही नहीं, गांधी, लोहिया और जयप्रकाश की चिन्ताओं का हल खोजने का अभूतपूर्व प्रयत्न है। पुस्तक पश्चिमी सभ्यता की उपलब्धियों को रेखांकित करती है, परन्तु इसके बावजूद मनुष्यता के क्रमिक क्षरणा के प्रति भी सजग करती है। मनुष्य को कैसे बदला जाय कि वह प्रश्नों और संकटों का स्वयं उत्तर देता चले इस सार्थक विकल्प के लिए यह पुस्तक उन सबके लिए पठनीय है, जो इन प्रश्नों से विचलित होते हैं।

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