पन्नों पर कुछ दिन / नामवर सिंह
By: सिंह, नामवर | Singh, Namwar [लेखक | Author].
Contributor(s): सिंह, विजय प्रकाश | Singh, Vijay Prakash [सम्पादक | Editor].
Publisher: नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन, 2021Description: 152p.ISBN: 9789390678433.Other title: Pannon Par Kuch Din by Namwar Singh.Subject(s): नामवर सिंह – कृतियाँ -- निबंध -- हिंदी साहित्य | साहित्यिक आलोचना – हिंदी साहित्य -- समकालीन समीक्षा -- विचार और दृष्टिकोण | हिंदी साहित्य – अध्ययन और आलोचना -- साहित्यिक मूल्यांकन -- आधुनिक हिंदी साहित्य | भारतीय लेखक – आत्मकथात्मक तत्व -- साहित्य में चित्रण -- व्यक्तिगत दृष्टिकोण | हिंदी निबंध – साहित्य और समाज -- साहित्यिक विमर्श -- सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यDDC classification: 891.433 Summary: इन दो अलग-अलग कालखण्डों की डायरी से गुज़रने पर ऐसा लगता है कि यह विद्यार्थी नामवर सिंह से शोधार्थी नामवर सिंह की यात्रा का एक संक्षिप्त साहित्यिक वृत्तान्त है। उनके एकान्त के क्षणों का चिन्तन, अपने मित्रों, गुरुओं तथा उस समय के उभरते हुए साहित्यकारों के साथ बौद्धिक-विमर्शसब कुछ इन दोनों डायरियों में दर्ज है। इन डायरियों को उस समय के साहित्यिक वातावरण का दर्पण भी कहा जा सकता है। बनारस और इलाहाबाद उस समय साहित्य, संगीत और कला की उर्वर भूमि थे। साहित्य की बहुत-सी प्रसिद्ध हस्तियाँ इन शहरों की देन थीं, जिनका इन शहरों से लगाव भी बराबर बना रहा। इन शहरों के उस कालखण्ड पर नज़र डालें, तो मशहूर ग्रीक कवि कवाफ़ी का यह वाक्य याद आता है- “हम किसी शहर में नहीं, समय विशेष में रहते हैं और समय?' ये शहर तो आज भी हैं, लेकिन वह समय, वे लोग, वह वातावरण अब पहले की तरह नहीं हैं। नामवर सिंह को बेहतर जानने और समझने की जिज्ञासा रखने वालों के लिए पन्नों पर कुछ दिन पुस्तक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ हो सकती है।Item type | Current location | Call number | Status | Date due | Barcode |
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NASSDOC Library | 891.433 SIN-P (Browse shelf) | Available | 54661 |
इन दो अलग-अलग कालखण्डों की डायरी से गुज़रने पर ऐसा लगता है कि यह विद्यार्थी नामवर सिंह से शोधार्थी नामवर सिंह की यात्रा का एक संक्षिप्त साहित्यिक वृत्तान्त है। उनके एकान्त के क्षणों का चिन्तन, अपने मित्रों, गुरुओं तथा उस समय के उभरते हुए साहित्यकारों के साथ बौद्धिक-विमर्शसब कुछ इन दोनों डायरियों में दर्ज है। इन डायरियों को उस समय के साहित्यिक वातावरण का दर्पण भी कहा जा सकता है। बनारस और इलाहाबाद उस समय साहित्य, संगीत और कला की उर्वर भूमि थे। साहित्य की बहुत-सी प्रसिद्ध हस्तियाँ इन शहरों की देन थीं, जिनका इन शहरों से लगाव भी बराबर बना रहा। इन शहरों के उस कालखण्ड पर नज़र डालें, तो मशहूर ग्रीक कवि कवाफ़ी का यह वाक्य याद आता है- “हम किसी शहर में नहीं, समय विशेष में रहते हैं और समय?' ये शहर तो आज भी हैं, लेकिन वह समय, वे लोग, वह वातावरण अब पहले की तरह नहीं हैं। नामवर सिंह को बेहतर जानने और समझने की जिज्ञासा रखने वालों के लिए पन्नों पर कुछ दिन पुस्तक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ हो सकती है।
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